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रघुवंश
अतिष्ठदालीढविशेष शोभिना वपुः प्रकर्षेण विडम्बितेश्वरः। 3/52 उस समय सुंदर शरीर के कारण वे ऐसे लग रहे थे, मानो इन्द्र से युद्ध करने के लिए स्वयं शंकर भगवान आ रहे हों। स्फुरत्प्रभा मंडलमध्यवर्ति कान्तं वपुर्कोम चरं प्रपेदे। 5/51 वह देवताओं के समान सुन्दर और तेजपूर्ण शरीर लेकर खड़ा हो गया। संयोक्ष्यसे स्वेन वपुर्महिम्ना तदेत्यवोचत्स तपोनिधिर्माम्। 5/55 तब प्रसन्न होकर उस तपस्वी ने मुझसे कहा- फिर से अपना वास्तविक शरीर प्राप्त हो जाएगा। वपुषाकरणोज्झितेन सा निपतन्ती पतिमप्यपातयत्। 8/38 प्राणहीन होने से वह गिर पड़ी और उसके साथ-साथ अज भी गिर पड़े। राम इत्याभिरामेण वपुषा तस्य चोदितः। 10/67 उस बालक का सुंदर शरीर देखकर उसका नाम राम रख दिया। स्वं वपुः स किल किल्विषच्छिदां राम पादरज सामनुग्रहः। 11/34 राम के चरणों की धूल सब पापों को हरने वाली थी, इसलिए उसके छूते ही उसे वही पहले वाला सुन्दर शरीर मिल गया। तस्य वीक्ष्य ललितं वपुः शिशो:पार्थिवः प्रथितवंशजन्मनः। 11/38 जब जनक जी ने एक ओर प्रसिद्ध वंश में उत्पन्न हुए बालक राम के कोमल शरीर को देखा। वपुर्महोरगस्येव करालफण मण्डलम्। 12/98 मानो फणों का चमकीला मंडल लिए हुए शेषनाग ही हों। उपस्थितश्चारुवपुस्तदीयं कृत्वोपभोगोत्सुक येव लक्ष्म्या। 14/24 मानो राज्य लक्ष्मी ने ही राम के साथ रमण करने की इच्छा से सीता का सुन्दर रूप धर लिया हो। अन्वमीयत शुद्धेति शान्तेन वपुषैव सा। 15/77 सीताजी अपने शान्त शरीर से ही पवित्र दिखाई देती थीं। लौल्यमेत्य गृहिणी परिग्रहान्नर्तकीष्व सुलभासु तद् वपुः। 19/19 जब कभी उसे रानियाँ रोक लेती, तब नर्तकियों का शरीर न मिलने से वह
विरह-कातर हो जाता और किसी नर्तकी का चित्र बनाने लगता था। 9. विग्रह :-[वि०+ग्रह+अप्] शरीर।
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