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कालिदास पर्याय कोश मानो कामदेव शरीर भस्म करने के पश्चात् शिवजी के हाथ से तोड़ी हुई कामदेव के धनुष की डोरी हो। तस्य दण्डवतो दण्डः स्वेदहान व्यशिष्यत। 17/62 जो उनकी सेना थी, उसे दण्डधर अतिथि अपने उस शरीर के सामन ही प्यार करते थे। मृगैरजर्यं जरसोपदिष्टमदेहबंधाय पुनर्बबन्ध। 18/7 स्वयं बुढ़ापे के कारण जंगलों में जाकर मृगों के साथ इसलिए रहने लगे कि फिर
संसार में जन्म न लेना पड़े। 6. मूर्ति :-[मूर्च्छ+क्तिन्] शरीर, आकृति, रूप।
स्वमूर्तिलाभप्रकृतिं धरित्री लतेव सीता सहसा जगाम्। 14/54 सीता जी भी लू लगी हुई लता के समान ही, अपनी माँ पृथ्वी की गोद में गिर
पड़ी। 7. यष्टि :-[यज्+क्तिन्, नि० न संप्रसारणम्] शरीर, आकृति।
तामंकमारोप्य कृशांगयष्टिं वर्णान्तराक्रान्तपयोधराग्राम्। 14/27 तब वे दुबली तथा काली घुण्डी के स्तनों वाली लजीली सीताजी को एकांत में
गोद में बैठाकर पूछने लगे। 8. वपु :-[वप्+उसि] शरीर, देह।
विलोकयन्त्यो वपुरापुरक्ष्णां प्रकामविस्तारं फलं हरिण्यः। 2/11 हरिणियाँ उनके सुंदर शरीर को देखती ही रह गईं, मानो नेत्र के बड़े होने का उन्हें सच्चा फल प्राप्त हो रहा है।। आपीनभारोद्वहनप्रयत्नाद् गृष्टिगुरुत्वाद् वपुषो नरेन्द्रः। 2/18 नंदिनी अपने थन के भारी होने के कारण धीरे-धीरे चलती थी और राजा दिलीप भारी शरीर होने के कारण धीरे-धीरे चल रहे थे। रघुः क्रमाद्यौवनभिन्नशैशवः पुपोष गाम्भीर्य मनोहरं वपुः। 3/32 जब रघु ने बचपन बिताकर युवावस्था में पैर रखा तब उनका शरीर और भी खिल उठा। वपुः प्रकार्षादजयद्गुरुं रघुस्तथापि नीचैर्विनयादृश्यत। 3/34 शरीर बढ़ जाने के कारण रघु अपने बूढ़े पिता से ऊँचे और तगड़े लगते थे, फिर भी वे इतने नम्र थे कि उन्होंने कभी अपना बड़ापन प्रकट नहीं होने दिया।
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