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रघुवंश
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आत्मकर्मक्षमं देहं क्षात्रो धर्म इवाश्रितः । 1/13
सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों के नाश करने का जो मेरा कर्म है, वह इस शरीर से अवश्य पूरा हो सकेगा ।
स त्वं मदीयेन शरीरवृत्तिं देहेन निर्वर्तयितुं प्रसीद | 2/45
इसलिए तुम मेरा यह शरीर खाकर अपनी भूख मिटा लो ।
तदक्ष कल्याण परम्पराणां भोक्तारमूर्ज स्वलमात्मदेहम् | 2/50
तुम अपने बलवान् शरीर की रक्षा करो, अभी तुम्हारे खेलने-खाने के दिन हैं। स न्यस्तशस्त्रो हरये स्वदेहमुपानयत्पिण्डमिवामिषस्य । 2/59
राजा दिलीप अपने अस्त्र फेंककर माँस के पिंड के समान सिंह के आगे जा पड़े। निपेतुरंतः करणैर्नरेन्द्रा देहैः स्थिताः केवल मासनेषु । 6/11
उसकी सुंदरता देखते ही सब राजाओं के मन तो उस पर चले गए, केवल उनका शरीर भर मंचों पर रह गया ।
तुरंगमस्कन्धनिषण्णदेहं प्रतयाश्वसन्तं रिपुमाचकांक्ष | 7/47
चोट खाते ही वह शत्रु घोड़े के कंधों पर झुक गया और उसमें इतनी शक्ति न रही कि सिर तक उठा सके। शत्रु घुड़सवार यह मनाने लगा कि वह फिर से जी उठे । तस्थौ ध्वजस्तम्भनिषण्णदेहं निद्रा विधेयं नरदेवसैन्यम् । 7/62
उन राजाओं की सेना झंडियों के डंडों के सहारे अचेत सो गई। श्रुतदेह विसर्जन: पितुश्चिरमश्रूणि विमुच्य राघवः । 8 / 25 अपने पिता का देह त्याग का समाचार पाकर रघु बहुत रोए । तीर्थे तो व्यतिकरमेव जहुकन्यासरय्वोर्देहत्यागाद् । 8 / 95
थोड़े दिनों में ही गंगा और सरयू के संगम पर उन्होंने अपना शरीर छोड़कर ।
प्रेक्ष्य स्थितां सहचरीं व्यवधाय देहम् । 9/57
उन्होंने देखा कि उसकी सहचरी हरिणी बीच में आकर खड़ी हो गई ।
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स जल कुम्भ निषण्णदेहः 19/76
घड़े पर झुका हुआ किसी मुनि के पुत्र का शरीर ।
स गत्वा सरयूतीरं देह त्यागेन योगवित् । 15/95
लक्ष्मण ने सरयू के किनारे जाकर योगबल से शरीर छोड़कर ।
दग्ध्वापि देहं गिरिशेन रोषात्खंडीकृता ज्येव मनोभवस्य । 16/51
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