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कालिदास पर्याय कोश नेपथ्यदर्शिनश्छाया तस्यादर्श हिरण्मये। 17/26 सोने की चौखटवाले दर्पण में जब वे अपनी सजावट देखने लगे, उस समय
उनका प्रतिबिंब ऐसा लग रहा था। 2. दर्पण :-[दृप्+णिच् ल्युट्] आईना, दर्पण, शीशा (मुँह देखने का)।
प्रभानुलिप्तश्रीवत्सं लक्ष्मी विभ्रमदर्पणम्। 10/10 जिस दर्पण में लक्ष्मीजी शृंगार के समय अथवा हाव-भाव करते हुए अपना मुँह देखा करती हैं और जिसकी चमक से श्रीवत्स चिह्न भी चमक उठता था। दर्पणेषु परिभोग दर्शिनीनर्मपूर्व मनुपष्ठ संस्थितः। 19/28 जब कभी स्त्रियाँ दर्पण के आगे खड़ी होकर दाँत काटने या छूटने आदि संभोग के चिह्नों को देखने लगती थीं, तब राजा उनके पीछे चुपके से आकर खड़ा हो जाता। प्रेक्ष्य दर्पण तलस्थमात्मनो राजवेशमति शक्रशोभिनम्। 19/30 वह राजा इन्द्र के वस्त्रों से भी सुंदर अपने राजसी वस्त्र को दर्पण में देखकर उतना प्रसन्न नहीं होता था।
दह
1. दह :-जलाना, झुलसाना, उड़ा देना, पीड़ा देना, सताना, कष्ट देना, दुःखी
करना। इति तौ विरहान्तरक्षमौ कथमत्यन्तगता न मां दहेः। 8/56 तुम तो सदा के लिए चली जा रही हो, फिर बताओ मैं विरह की आग में जलकर
क्यों न भस्म हो जाऊँ। 2. दु:- जलाना, आग में भस्म करना, सताना, कष्ट देना, दुःख देना।
इदमुच्छ्वसितालकं मुखं तव विश्रान्तकथं दुनोति माम्। 8/55 तुम्हारा बिखरी अलकों से ढका मौन मुख देखकर मेरा हृदय फटा जा रहा है।
दिक्
1. दिक् :-दिशा, ओर, तरफ।
षड्विधं बलमादाय प्रतस्थे दिग्जिगीषया। 4/26
छः प्रकार के सेना लेकर वे दिग्विजय के लिए चल पड़े। 2. दिशा :- [दिश्+अङ्कटाप्] ओर, तरफ।
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