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रघुवंश
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वामेतरस्तस्य करः प्रहर्तुर्नुखप्रभा भूषितं कंक पत्रे। 2/31 उनके दाहिने हाथ की उँगलियाँ, उनके नखों से चमकने वाले बाणों के पंखों से चिपक गईं। वामेतरः संशयमस्य बाहुः केयूरबंधोच्छ्वसितैर्नुनोद। 6/68 पर उसी समय भुजबंध के पास उनकी दाईं भुजा फड़क उठी, जिससे उनकी शंका दूर हो गई। सव्येतर :-[सू+य+इतर] सही, ठीक, दक्षिणी, दाहिना। निचरवानाधिकक्रोधः शरं सव्येतरे भुजे। 12/90 रावण ने क्रोध करके राम की उस दाहिनी भुजा में बाण मारा। सभाजने मे भुज मूर्ध्वबाहुः सव्येतरं प्राध्वमितः प्रयुक्ते। 13/43 देखो! वे मुझे देखकर अपनी दाहिनी भुजा उठाकर मेरा स्वागत कर रहे हैं। जुगूह तस्याः पथि लक्ष्मणो यत्सव्येतरेण स्फुरता तदक्ष्णा। 14/49 पर सीताजी के दाहिने नेत्र ने फड़ककर आगे आने वाले दुःख की सूचना दे ही तो दी।
दद 1. दद् :-[दा०+श] देने वाला, प्रदान करने वाला।
महीध्र पक्षव्य परोपणोचितं स्फुरत्प्रभामण्डलमस्त्रमाददे। 3/60 अपने प्रबल शत्रु रघु को मारने के लिए पर्वतों के पंख काटने वाले अग्नि के
समान चमकीले वज्र को उठा लिया। 2. सज्ज :-[सस्ज्+अच्] तत्पर, तैयार किया हुआ, पूर्णतः सुसज्जित, किलेबन्दी
करके। भुजे भुजंगेन्द्रसमान सारे भूयः स भूमे(रमाससन्न। 2/74 वहाँ पहुँचकर उन्होंने शेषनाग के समान अपनी बलवती भुजाओं से फिर राजकाज सँभाल लिया।
दर्पण 1. आदर्श :-[आ+दृश्+घञ्] आईना, दर्पण।
अथानपोदार्गलमप्यगारं छायामिवादर्शतलं प्रवष्टिाम्। 16/6 जैसे दर्पण में मुँह का प्रतिबिंब पैठ जाता है, वैसे ही द्वार बंद रहने पर भी वह स्त्री घर के भीतर आ गई थी।
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