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कालिदास पर्याय कोश जैसे कार्तिकेय के समान पुत्र को पाकर शंकर और पार्वती और जयंत जैसे
प्रतापी पुत्र को पाकर इंद्र और शची प्रसन्न हुए थे। 17. वृषध्वज :-[वृष + क + ध्वजः] शिव का विशेषण।
विदुतक्रतुमृगानुसारिणं येन बाणम सृजवृषध्वजः। 11/44 जिसे हाथ में लेकर शंकर जी ने मृग के रूप में दौड़ने वाले यज्ञ देवता के ऊपर
बाण छोड़े थे। 18. शूलभृत :-[शूल् + क + भृत्] शिव का विशेषण।
व्यापारितः शूलभृता विधाय सिंहत्वमङ्कागतसत्त्ववृत्ति। 2/38 शंकर जी ने यहाँ रखवाला बनाकर मुझे रख छोड़ा है और मेरा पेट भरने के लिए मुझे आज्ञा दे दी है, कि यहाँ जो जीव आवे, उसे सिंह के स्वभावानुसार मारकर
खा जाया करो। 19. स्थाणु :-[स्था + नु, पृषो० णत्वम्] शिव का विशेषण।
स्थाणु दग्धवपुषस्तपोवनं प्राप्य दाशरथिरात्तकार्मुकः। 11/13 जिस तपोवन में शिवजी ने कामदेव को भस्म किया था, वहाँ जब राम धनुष
उठाए हुए पहुंचे। 20. हर :-[ह + अच्] शिव।
बभौ हरजटा भ्रष्टां गङ्गामिव भगीरथः। 4/32 मानो शंकरजी की जटा से मिलती हुई गंगाजी को साथ लिए भागीरथ जी चले जा रहे हों। अस्त्रं हरादाप्तवता दुरापं येनेन्द्रलोकावजयाय दृप्तः। 6/62 कहीं ऐसा न हो कि मेरी पीठ पीछे ये मेरे देश को तहस-नहस कर दें, क्योंकि इन्होंने भी शिवजी से बड़ा प्रतापी अस्त्र प्राप्त किया है।
दंत
1. दंत :-[दम्+तन्] दाँत।
नीलोर्ध्वरेखा शबलेन शंसन्दन्तद्वयेनाश्म विकुण्ठितेन। 5/54 टीलों पर टक्कर मारने से उसकी दाँत पर जो नीली-नीली रेखाएँ बन गई थीं, उनसे जान पड़ता था।
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