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रघुवंश
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तनुत्याजां वर्मभृतां विकोशैर्वृहत्सु दंतेष्वसिभिः पतद्भिः। 7/48 जो कवचधारी योद्धा अपने प्राण हथेली पर लिए लड़ रहे थे, उन्होंने नंगी तलवार से जब हाथियों के दाँतों पर चोटें की, तब चिनगारी निकलने लगी। दंष्ट्रा :-[दंश्+ष्ट्रन्+टाप्] बड़ा दाँत। अथान्धकारं गिरिगह्वराणां दंष्ट्रा मयूखैः शकलानि कुर्वन्। 2/46 यह सुनकर वह शिवजी का सेवक सिंह गुफा के अंधेरे में दाँत की चमक से
उजाला करता हुआ कुछ हँसकर। 3. दशन :-[दंश्+ल्युट् [नि० नलोपः] दाँत।
उवाच वाग्मी दशनप्रभामिः संवर्धितोरः स्थलतारहारः। 5/52 जब उसने बोलने के लिए मुँह खोला, तब उसके दाँतों की चमक से उसके गले में पड़ा हुआ हार दमक उठा। आभाति लब्धपरभाग तयाधरोष्ठे लीलास्मितं सदशनार्चिरिव त्वदीयम्।
5/70 जैसे तुम्हारे हँसने के समय तुम्हारे लाल-लाल ओठों पर पड़ी हुई तुम्हारे दाँतों की चमक सुन्दर लगती है। बभौ सदशन ज्योत्सना सा विभोर्वदनोग्दता। 10/37 उनके दाँतों की चमक से जगमगाती हुई उनकी वाणी, जब मुख से निकली। रदन :-[रद्+ल्युट] दाँत। मत्तेभरदनोत्कीर्णव्यक्त विक्रमलक्षणम्। 4/59 वहाँ रघु के मतवाले हाथियों ने अपने दाँतों की चोटों से जो रेखाएँ बनाई थीं, वह उनके जयस्तम्भ के समान थीं।
दंपति
1. जायापति :-[जाया च पति श्च] पति और पत्नी।
उभौ विरोध क्रियया विभिन्नौ जायापती सानुशयाविवास्ताम्। 16/45 ये दोनों उन पछताते हुए पति-पत्नी के समान दिखाई देने लगे, जो आपस में
झगड़ा करके एक दूसरे से रूठे बैठे हों। 2. दंपति :-[जाया च पतिश्च द्व० स०-जाया शब्दस्य दमादेशः द्विवचन] पति
और पत्नी।
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