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रघुवंश 2. परित्याग :-[परित्यज्+घञ्] छोड़ना, परित्याग, छोड़ देना।
रामं सीतापरित्यागाद सामान्यपतिं भुवः। 15/39 सीताजी को छोड़ देने पर अब वे राम एक मात्र पृथ्वी के ही स्वामी रह गए हैं।
त्र्यम्बक 1. अष्टमूर्ति :-[अंश् + कनिन्, तुट् च + मूर्तिः] अष्टरूप, शिव का विशेषण।
अवेहि मां किंकरमष्टमूर्तेः कुम्भोदरं नाम निकुम्भमित्रम्। 2/35 मैं सर्वशक्तिशली शंकर जी का कृपापात्र और सेवक कुंभोदर नाम का गण हूँ
और शिवजी के शक्तिशाली गण निकुंभ का मित्र हूँ। 2. ईश्वर :-[ईश् + वरः] परमेश्वर, शिव।
अतिष्ठदालीढ विशेष शोभिना वपुः प्रकर्षेण विडम्बितेश्वरः। 3/52 उस समय वे ऐसे लग रहे थे, मानो इंद्र से युद्ध करने के लिए स्वयं शंकर भगवान् आ डटे हों। रतेहीतानुनयेन कामं प्रत्यर्पितस्वाङ्गमिवेश्वरेण। 6/2 क्योंकि अज ऐसे लग रहे थे मानो साक्षात् कामदेव हों, जिसे शिवजी ने रति की प्रार्थना पर फिर से जीवित कर दिया हो। अधिवसंस्तनुमध्वरदीक्षिताम् समभासमभासयदीश्वरः। 9/21 जब वे यज्ञ की दीक्षा लेकर बैठे, उस समय भगवान अष्टमूर्ति महादेव उनके शरीर में पैठ गए, जिससे उनकी शोभा और भी अधिक बढ़ गई। जेतारं लोकपालानां स्वमुखैरर्चितेश्वरम्। 12/89 जिस रावण ने इंद्र आदि लोकपालों को जीत लिया था, जिसने अपने सिर
काट-काटकर शिवजी को चढ़ा दिए थे। 3. गिरीश :-[गृ + इ किच्च + ईश:] शिव का विशेषण।
प्रत्याहतास्त्री गिरिशप्रभावादात्मन्यवज्ञां शिथिली चकार। 2/41 शंकरजी के प्रभाव से ही हम अस्त्र नहीं चला सके, तब उनके मन की आत्मग्लानि कुछ कम हुई। दग्ध्वापि देहं गिरिशेन रोशाखण्डीकृता ज्येव मनोभवस्य। 16/51 मानो कामदेव का शरीर भस्म करने के पश्चात् शिवजी के हाथ से तोड़ी हुई कामदेव के धनुष की डोरी हो।
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