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कालिदास पर्याय कोश
अथ धूमाभिताम्राक्षं वृक्षशाखावलम्बिनम् | 15/49
एक पेड़ की शाखा पर उल्टा लटके हुए मनुष्य की आँखें धुआँ लगने से लाल हो गई हैं।
3. पाटल : - [ पट् + णिच्+कलच् ] पीतरक्त वर्ण, गुलाबी रंग ।
स पाटलायां गवि तस्थिवांसं धनुर्धरः केसरिणं ददर्श । 2/29
धनुषधारी राजा दिलीप ने देखा कि उस लाल गौ पर बैठा हुआ सिंह, ऐसा लग रहा है
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तुषार
1. तुषार : - [ तुष्+आरक्] ठंडा, शीतल, तुषाराच्छन्न, ओसयुक्त । पृक्तस्तुषारैर्गिरिनिर्झराणां मनोकहाकम्पित पुष्पगन्धी । 2 / 13
पहाड़ी झरनों की ठंडी फुहारों से लदा हुआ और मंद-मंद कँपाए हुए वृक्षों के फलों की गंध में बसा हुआ ।
2. नीहार : - [ नि+ह्+घञ्, पूर्वदीर्घः ] कुहरा, धुंध, पाला, भारी ओस । नीहारमग्नो दिनपूर्वभाग: किंचित्प्रकाशेन विवस्वतेव । 7/60
जैसे कोहरे के दिन, प्रभात होने का ज्ञान धुंधले सूर्य को देखकर होता है । 3. हिम : - [ हि+मक्] ठंडा, शीतल, सर्द, तुषार युक्त, ओसीला ।
हिमनिर्मुक्तयोर्योगे चित्राचन्द्रम सोरिव। 1/46
जैसे चैत की पूनों के दिन चित्रा नक्षत्र के साथ उजला चन्द्रमा आँखों को भला लगता है।
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त्याग
1. त्याग : - [ त्यज्+घञ् ] छोड़ना, परित्याग, छोड़ देना ।
त्यागाय संभृतार्थानां सत्याय मितभाषिणाम् । 1 /7
जो दान करने के लिए ही धन बटोरते थे, जो सत्य की रक्षा के लिए बहुत कम बोलते थे ।
ज्ञाने मौनं क्षमाशक्त त्यागे श्लाघाविपर्ययः । 1 / 22
वे सब कुछ जानकर भी चुप रहते थे, शत्रुओं से बदला लेने की शक्ति रहते हुए भी उन्हें क्षमा कर देते थे, और त्याग करके भी अपनी प्रशंसा कराने की इच्छा नहीं करते थे ।