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रघुवंश
103 तब क्षीरसागर के तट पर खड़े हुए पहाड़ों की गुफाओं में उनके शब्द गूंज उठे। वेलानिलायप्रसृता भुजंगा महोर्मिविस्फूर्जथुनिर्विशेषाः। 13/12 ये जो बड़ी-बड़ी लहरों के जैसे तट पर दिखाई दे रहे हैं, ये साँप हैं जो तट का वायु पीने के लिए बाहर निकल आए हैं। वेलानिलः केतकरेणुभिस्ते संभावत्याननमायताक्षि। 13/16 समद्र तट का वायु तुम्हारे मुख पर केतकी का पराग छिड़क रहा है, मानो वह यह जान गया है कि मैं तुम्हारे अधरों को चूमने ही वाला हूँ। अन्योन्य देश प्रविभाग सीमां वेला समुद्रा इव न व्यतीयुः। 16/2 जैसे समुद्र अपने तट का उल्लंघन नहीं करता है, वैसे ही उनमें से किसी ने भी अपने राज्य की सीमा लांघकर, दूसरे भाई के राज्य की सीमा में प्रवेष करने का यत्न नहीं किया। बभौ बलौघः शशिनोदितेन वेला मुदन्वानिव नीयमानः। 16/27 जैसे चंद्रमा उदित होकर समुद्र को तट तक खींच लेता है।
तपस्वी 10. तपस्वी :-[तपस्+विनि] तपस्वी, भक्तिनिष्ठ ।
पूर्यमाणम दृश्याग्नि प्रत्युद्यातैस्तपस्विभिः। 1/49 वहाँ पहुँचकर वे देखते क्या हैं कि संध्या के अग्निहोत्र के लिए बहुत से तपस्वी हाथ में। स जातुकर्मण्यखिले तपस्विना तपोवनादेत्य पुरोधसा कृते। 3/18 पुरोहित वशिष्ठजी ने भी जब यह समाचार पाया, तब वे भी तपोवन से आए और
स्वभाव से ही सुंदर उस बालक के जातकर्म आदि संस्कार किए। 2. तापस :-वानप्रस्थ, भक्त, संन्यासी।
त्राणाभावे हि शापास्त्राः कुर्वन्ति तपसो व्ययम्। 15/3 वे तपस्वी तपस्या से बटोरे हुए तेज को ऐसे काम में तभी लगाते हैं, जब कोई दूसरा उसका रक्षक न हो।
तपोनिधि 1. तपोधन :-[तप्+असुन्+धनः] साधना का धनी, तपस्वी।
प्रतिप्रयातेषु तपोधनेषु सुखाद विज्ञातगतार्धमासान्। 14/19
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