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रघुवंश
नदीमिवान्तः सलिलां सरस्वती नृपः ससत्वां महिषीममन्यत्। 3/9 राजा दिलीप रानी सुदक्षिणा को वैसी ही महत्त्व वाली समझते थे, जैसे भीतर ही भीतर जल बहाने वाली सरस्वती नदी। अथोपरिष्टाभ्रमरैर्भमद्भिः प्राक्सूचितान्तः सलिल प्रवेशः। 5/43 जिसके जल में घुसने की सूचना जल के ऊपर ही भनभनाने वाले भंवरें दे रहे
अनुभूय वशिष्ठ संभृतैः सलिलैस्तेन महाभिषेचनम्। 8/3 अज के राज्याभिषेक के समय वशिष्ठजी ने उनके ऊपर जो पवित्र जल छिड़का, वह पृथ्वी पर भी पड़ा। दूरावतीर्ण पिबतीव खेदादमूनि पंपासलिलानि दृष्टिः। 13/30 बहत ऊँचे से देखने के कारण और बेंत के जंगलों से ढका होने के कारण पंपा सरोवर का जल ठीक-ठीक नहीं दिखाई दे रहा है। तदस्यजैत्राभरणं विहर्तुरज्ञातपातं सलिले ममज्ज। 16/72 जल-क्रीड़ा करते समय वह आभूषण पानी में गिर पड़ा और किसी को इसका पता नहीं चला। तत्र तीर्थसलिलेन दीर्घिकास्तल्पमन्तरितभूमिभिः कुशैः। 19/2 वहाँ वे तीर्थ जल के आगे घर की बावलियों को, भूमि पर बिछे हुए कुश के आगे राजसी पलंग को भूल गये।
ज्या
1. ज्या :-[ज्या+अ+टाप्] धनुष की डोरी।
रघुः शशांकार्धमुखेन पत्रिणा शरासन ज्यामलुनाद्विडौजसः। 3/59 तब रघु ने अर्द्धचन्द्र के आकार के बाण से इंद्र की ठीक कलाई के पास धनुष की वह डोरी काट डाली। निर्घातोग्रैः कुंजलोनांजिघांसुा निर्घोषैः क्षोभयामास सिंहान्। 9/64 झाड़ियों में लेटे हुए सिंहो को मारने के लिए पहले उन्होंने आँधी के समान भयंकर शब्द करने वाली अपने धनुष की डोरी से टॅकार की, जिसे सुनते ही सिंह भड़क उठे। यन्ता हरेः सपदि संहृतकार्मुकज्याम पृच्छय राघवमनुष्ठित देवकार्यम्।
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