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कालिदास पर्याय कोश
पयः पूर्वैः स्वनिःश्वासैः कवोष्णमुपभुज्यते। 1/67 मेरे पीछे उन्हें जल नहीं मिलेगा और फिर वे अपनी साँसों से गरम हुए जल को ही पी डालते हैं। तथेत्युषस्पृश्य पयः पवित्रं सोमोद्भवायाः सरितो नृसोमः। 5/59 उन्होंने पहले चंद्रमा से निकली हुई नर्मदा के जल का आचमन किया। रसान्तराण्येकरसं यथा दिव्यं पयोऽश्नुते। 10/17 जैसे एक स्वादवाला वर्षा का जल अलग-अलग देशों में बरसकर अलग-अलग स्वाद वाला हो जाता है। वृषेक पयसां सारमाविष्कृतमुदन्वता। 10/52 जैसे इन्द्र ने समुद्र में से निकले हुए अमृत के कलश को थाम लिया था। प्रवृत्तमात्रेण पयांसि पातुमावर्तवेगाद्धमता घनेन। 13/14 काले-काले बादल समुद्र का पानी लेने आए हैं और समुद्र की भंवर के साथ-साथ बड़ी तीव्र गति से चक्कर काट रहे हैं। यां सैकतोत्संगसुखो चितानां प्राज्यैः पयोभिः परिवर्धितानाम्। 13/62 इसी के बालू में खेल खेलकर वे सब पलते हैं और इसी का मीठ जल पीकर पुष्ट होते हैं। अथ वाल्मीकि शिष्येण पुण्यमाविर्जितं पयः। 15/80
वाल्मीकि जी के शिष्य ने पवित्र जल लाकर दिया। 8. वारि :-[वृ+इञ्] जल, पानी।
अमी शिरीष प्रसवावतं साः प्रभ्रंशिनो वारि विहारिणीनाम्। 16/61 इन जल क्रीड़ा करने वाली रानियों के कानों से सिरस के कर्णफूल खिसककर नदी में गिर कर तैर रहे हैं। श्रोत्रेषु संमूर्च्छति रक्तमासां गीतानुगं वारिमृदंगवाद्यम्। 16/64 ये गा-गाकर जो मृदंग बजाने के समान थपकी दे-देकर जल ठोक रही हैं, उसे सुनकर। एताः करोत्पीडित वारिधारा दातसखीभिर्वदनेषु सिक्ताः। 16/66 जब इनकी सखियाँ इनके मुँह पर पानी डालती हैं और यह अहंकारसे अपनी
सखियों पर पानी उछालती हैं। १. सलिल :-[सलति गच्छति निम्नम्-सल्+इलच्] पानी।
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