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कालिदास पर्याय कोश
छोटी ही अवस्था में वे इतने चतुर हो गए थे, कि बिना बुढ़ापा आए ही उनकी गिनती बड़े बूढ़ों में होने लगी ।
जल
पानी ।
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1. अंबु : - [ अम्ब् + उण्] जल,
विश्वासाय विहंगानामालबालाम्बु पायिनाम् । 1 / 51
जिससे पक्षी उन वृक्षों के थावलों का जल निडर होकर पी सकें । अनेन सार्धं विहराम्बुराशेस्तीरेषु तालीवन मर्मरेषु । 6 / 57 समुद्र के उन तटों पर विहार करो, जहाँ दिन रात ताड़ के जंगलों की तड़तड़ाहट सुनाई देती है।
तौ सरांसि रसबद्धभिरम्बुभिः कूजितै: श्रुति सुखैः पतत्रिणः । 11/11 सरोवरों ने अपना मीठा जल पिलाकर, पक्षियों ने मधुर गीत सुनाकर । एषा त्वया पेशल मध्ययापि घटाम्बुसंविर्धत बालचूता । 13/34 यहीं पर तो तुमने पतली कमर पर घड़े ले लेकर आम के वृक्षों को सींचकर पाला-पोसा था।
प्रांशुमुत्पाटयामास मुस्तास्तम्बमिव दुमम् । 15/19
एक बड़ा भारी पेड़ ऐसे धीरे से उखाड़ लिया, जैसे मोथा उखाड़ लिया जाता है। अंबुगर्भो हि जीमूत चातकैरभिनन्द्यते । 17/60
चातक उन्हीं बादलों का स्वागत करते हैं, जिनमें पानी भरा होता है ।
गूढ़ मोहन गृहास्तदम्बुभिः स व्यगाहत विगाढमन्मथः । 19/9
वह महाकामी राजा उन बावलियों में सुंदर स्त्रियों के साथ विहार करता था, जिनमें विलास - घर भी बने हुए थे।
2. अंभस् :- [आप् (अम्भू)+असुन्] जल, पानी ।
निषण्णायां निषीदास्यांपीताम्भसि पिबेरपः । 1 /89
जब बैठे तुम भी बैठ जाना और जब वह पानी पीने लगे, तभी तुम भी पानी पीना ।
मरुपृष्ठान्युदं भासि नाव्याः सुप्रतरा नदीः । 4 / 31
मरुभूमि में भी जल की धाराएँ बहने लगीं, गहरी नदियों पर पुल बँध गए। अध्यास्य चाम्भः पृषतो क्षितानि शैलेय गंधीनि शिलातलानि । 6/51
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