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रघुवंश
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पुंडरीकात पत्रस्तं विकसत्काश चामरः । 4/17
कमल के छत्र और फूले हुए कास के चँवर लेकर रघु से होड़ करने चली । चमरान्परितः प्रवर्तिताश्वः क्वचिदाकर्णविकृष्ट भल्लवर्षी । 9/66 चामर मृग के चारों ओर अपना घोड़ा दौड़ाते हुए, भाले की नोकवाले बाण बरसाकर उन्होंने उन मृगों की चँवरवाली पूँछें काट डालीं । कपोल संसर्पितया य एषां व्रजन्ति कर्णक्षणचामरत्वम् । 13/11
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इनके गालों पर क्षण भर के लिए लगी हुई यह फेन ऐसी दिखाई देती है, मानों इनके कानों पर चँवर टँगे हुए हों ।
पर्यंत संचारति चामरस्य कपोललोलो भयकाकपक्षात्। 19/43 उनके आस-पास चँवर डुलाए जाते थे और उनके गालों पर लटें लटकती रहती थीं ।
2. बाल : - [ बल्+ण या बाल्+अच्] बाल, पूँछ, चँवर । नृपतीनिव तान्वियोज्य सद्यः सितबालव्यजनैर्जगाम शांतिम् । 9/66 इससे उन्हें ऐसा संतोष हुआ मानो चँवरधारी राजाओं के चँवर ही उन्होंने छीन लिए हों ।
ज
जरा
1. जरा :-- [जृ + अङ्ग+टाप्] बुढ़ापा, क्षीणता ।
तस्य धर्मरतेरासीदवृद्धत्वं जरसा बिना। 1/23
छोटी ही अवस्था में वे इतने चतुर हो गए थे, कि बिना बुढ़ापा आए ही उनकी गिनती बड़े बूढ़ों में होने लगी।
कैकेयी शंकवाह पलितच्छद्मना जरा । 12/2
मान बुढ़ापा, कैकेयी से शंकित होकर यह कह रहा हो ।
3. वृद्धत्व : - [ वृध+क्त+त्व ] बुढ़ापा ।
तस्य धर्मरतेरासीद् वृद्धत्वं जरसा बिना । 1 / 23
2. वार्द्धक :- [ वृद्धानां समूहः तस्य भावः कर्म वा घुञ्] बुढ़ापा ।
वार्द्धके मुनिवृत्तिनां योगेनान्ते तनुत्यजाम् । 1/8
बुढ़ापे में मुनियों के समान जंगलों में जाकर तपस्या करते थे और अंत में
परमात्मा का ध्यान करते हुए अपना शरीर छोड़ते थे ।
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