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कालिदास पर्याय कोश
आपादपद्मप्रणताः कलमा इव ते रघुम् । 4 / 37
वैसे ही रघु ने उन राजाओं को फिर राज पर बैठा दिया, जो उनके पैरों पर आकर गिर पड़े थे ।
रत्नपुष्पोपहारेण च्छायामानर्च पादयोः । 4 / 84
इस प्रकार अज उन राजाओं के सिरों पर बायाँ पैर रखकर ।
स्वं वपुः स किल किल्विषच्छिदां रामपादरज सामनुग्रहः । 11/34
राम के चरणों की धूल के छूते ही, उसे इतने दिनों पीछे वही सुंदर शरीर मिल
गया।
राघव: शिथिलं तस्थौ भुवि धर्मस्त्रिपादिव । 15/96
राम उसी प्रकार ढीले पड़ गए जैसे पृथ्वी पर त्रेतायुग में तीन पैर वाला धर्म ढीला पड़ जाता है।
सालक्तकौ भूपतयः प्रसिद्धैर्ववन्दिरे मौलिभिरस्य पादौ । 18/41 राजाओं ने अपने प्रसिद्ध मुकुटों से उन महावर लगे पैरों का वंदन किया।
चातक
1. चातक :- [ चच् + ण्वुल् ] चातक, पपीहा ।
स्वस्त्यस्तु ते निर्गलितांबु गर्भं शरद्धनं नार्दति चातकोऽपि। 5/17 पपीहा भी बिना जल वाले बादलों से पानी नहीं माँगता, आपका कल्याण हो । अंबुगर्भो हि जीमूतश्चातकैरभिनन्द्यते । 17/60
चातक उन्हीं बादलों का स्वागत करते हैं, जिनमें पानी भरा होता है ।
2. सारंग : - [ सृ + अङ्गच्+अण्] चातक, पपीहा ।
प्रवृद्ध इव पर्जन्यः सारंगैरभिनंदितः। 17/15
मानो बहुत से चातक मिलकर बादल के गुण गा रहे हों ।
चामर
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1. चामर :- [ चमर्याः विकारः तत्पुच्छनिर्मितत्वात् चमरीः+अण्] चौरी, चंवर । अदेयमासीत्त्रयमेव भूपतेः शशिप्रभं छत्रमुभे च चामरे । 3/16
वे इतने प्रसन्न हुए कि छत्र और दोनों चँवर तो न दे सके, शेष सब आभूषण उतार कर उसे दे डालें।