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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेसिं जिट्टो भाया, भायाणं कारणं सुसीसाणं । गणि सबदेव नामो, न नामिओ केणइ हटेण ॥८॥ अर्थः-उन्होंका बड़ाभाई सुशिष्योंके भाग्यका कारण सर्वदेव नाम उपाध्याय जिन्होंको किसीने वादमें नहीं नमाया बला कारसे ॥ ८० ॥ सूर ससिणो विन समा, जेसिं जं ते कुणंति अत्थमणं । नक्खत्त गया मेसं मीणं मयरं विभुंजते ॥ ८१ ॥ अर्थः-सूर्यः चन्द्रमाभी जिन्होंके समान नहीं है कारण अस्त होते हैं नक्षत्र गतिमें मेष, मीन, मकर राशिको भोगवते हैं ॥८॥ जेर्सि पसाएण मए, मएण परिवज्जियं पयं परमं । निम्मलपत्तं पत्तं, सुहसत्त समुन्नइ निमित्तं ॥ ८२॥ अर्थः-जिन्होंके प्रसादसे मैंने मदरहित परमपद निर्मल पात्रपना पाया शुभ प्राणियोंकी उन्नतिका कारण ॥ ८२ ॥ तेसिं नमो पायाणं, पायाणं जेहिं रक्खिया अह्म । सिरिसूरिदेवभदाणं, सायरं दिनभदाणं ॥ ८३॥ अर्थः-उन्होंके चरणोंमें नमस्कार होवे जिन्होंने हमको संसारसे बचाया श्रीदेवभद्रसूरिको आदरसहित नमस्कार करें कैसे हैं देवभद्रसूरि किया है कल्याण जिन्होंने ॥ ८३॥ सूरिपदं दिन्न मसोगचंदसूरीहिं चत्तभूरीहिं। तेसि पयं मह पहुणो, दिन्नं जिणवल्लहस्स पुणो॥८४॥ अर्थः-अशोकचंदररिने दिया है आचार्यपद बहुतसोंको छोड़के For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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