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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ अर्थ:-विचाररहित ऐसे नामसे आचार्य ऐसे शूराचार्यादिकोंके साथमें विचारकरके साधुओंके वस्तिवास स्थापितकिया बहुतजीवोंको सन्मार्गमें स्थापा ॥ ६७॥ परिहरिय गुरुकमागयवरवत्ताए य गुज्जरत्ताए। वसहि निवासो जेहिं फुडी कओ गुजरत्ताए ॥ ६८॥ अर्थ-कितनेकसमयमें गुरुकमसेआयाहुआ प्रधानवर्ताव जिसगुजेरदेशमें चैत्यवासका परिहारकरके वस्तीनिवास जिन्होंने प्रगटकिया ऐसे जिनेश्वरसूरिआचार्य और ॥६८॥ तिजगयगयजीववंधूणं, य बंधु बुद्धिसागरसूरी।। कयवायरणो वि न जो, विवायरणकायरो जाओ॥१९॥ अर्थः-तीनजगत्के जीवोंकाबंधु ऐसा जो बुद्धिसागरमरि शास्त्रार्थरूप संग्राम किया है जिसने ऐसेभी विवादरणमें कायर न भए ऐसे ॥ ६९॥ सुगुणजणजणियभद्दो, सूरि जस्स विणेयगणप्पढमो, सपरोसि हियासुरसुंदरी कहा जेण परिकहिया ॥ ७० ॥ अर्थः-सद्गुणी लोगोंकों कल्याण किया है जिन्होंने ऐसे जिन्होंके शिष्यगणोंमें प्रथम शिष्य अपने और स्वपरकेहितकरनेवाली ऐसी सुरसुंदरी कथा जिसने रची ऐसे जिनभद्रसूरिः (गुणभद्र) ॥७॥ कुमयं वियासमाणो विहडावियकुमयचक्कवायगणो। उदयमिओ जस्सीसो, जयंमि चंदुव जिणचंदो ॥७१॥ अर्थः-भव्य कुमुदको विकासमानकर्ता कुत्सितमतरूप चक्रवाकके For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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