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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ उसके स्थानमें द्वेषसे १२०४ में ऊष्ट्रिक मत निकला कहना, यहभी द्वेषीके प्रत्यक्ष द्वेषभाववाले महामिथ्या कपोलकल्पित अनुचित आक्षेपवचन है। १२०४ में श्रीजिनदत्तमरिजीसे खरतरगच्छ खरतरविरुद खरतरमतकी उत्पत्ति हुई इत्यादि-कल्पित अनेक मिथ्याप्रलापोंसे अपने झूठे कदाग्रह मंतव्यको सिद्ध करना कि नवांगटीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजी महाराज खरतरगच्छवालोंकी गुरुशिष्यपरंपरामें नहीं हुए। परंतु उपर्युक्त शास्त्रपाठोंसे प्रत्यक्ष विरुद्ध इन महामिथ्या प्रलापोंसे अपने झूठे मंतव्यका जय कदापि नहीं कर सकते हैं। वास्ते अपने पूर्वज श्रीसोमधर्मगणिजीके शास्त्रसंमत उपयुक्त सत्यवचनोंसे सर्वथा विपरीत महाद्वेषीके कपोलकल्पित अनेक तरहके असत्यवचनोंसे पराजय फलको वेरवेर प्राप्त होना ठीक नहीं है। अस्तु यदि ऐसाही आग्रह है तो निम्नलिखित प्रश्नोंके उत्तर आग्रही सत्यप्रकाशित करें [१] अंचलगच्छकी पट्टावली आदिग्रंथोंमें लिखा है किसंवत् १२८५ में श्रीजगचंद्रसूरिजीसे (गाढक्रियतापसः) याने तापलमत-तपोमत-(चांडालिका तुल्या) पुष्पवती प्रभू पूजाका मत निकला और श्रीविजयदानसरिजीके शिष्य धर्मसागर गणिसे संवत् १६१७ में तपौष्ट्रिकमतकी उत्पत्ति हुई श्रीहीर विजयसूरिजीसे संवत् १६३९ में गर्दभी मतोत्पत्ति हुई इसतरहके तपगच्छ के १८ नाम हेतुवृत्तांतसहित लिखे हैं उनको आग्रही लोग सत्य मानते हैं या मिथ्या ? २ [प्रश्न] क्रमशश्चित्रवालकगच्छे-कविराजराजिनभसीव, For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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