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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २२८ सो अर्थरूपसें श्रीवर्धमानसूरिजीके संबंधमें दिया गया है, इसतरे श्रीआबुतीर्थकों प्रगटकर श्रीविमलवसहीकी प्रतिष्ठा करी, वादमे बहुत शासनकी प्रभावना करके स्वर्गगये इनोंके श्रीजिनेश्वर बुद्धिसागर जिनचन्द्र अभयदेवादि और श्रीमरुदेवा कल्याणवती महत्तरादि बहुतहि विद्वान गीतार्थ साधु-साध्वीयोंकी वृद्धि हुई, और बहुत बडा समुदाय होणेसें, बृहद्गच्छ इस नामसे यह गच्छ प्रसिद्ध हवा, ऐसा गणधरसार्धशतकादिकका अभिप्राय है, और पूर्वोक्त विषयपर आबुप्रबंध विशेष उपकारार्थ दिया जावे है-तद् यथा ॥ अह अनयाकयाइ सिरिवद्धमाणसूरि आयरिया अरन्नर गच्छनायगासिरिउज्जोयणसूरिणो गामाणुगाम दूइज्जमाणा अप्पडिबंधेणं वि गं विहरमाणा अब्बुयगिरि सिहरतलहट्टीए कासदहगामे समागया तयाणं विमलदंड नायगो पोरवाडवंसमंडणो देसभागं उग्गाहेमाणो सोवितत्थेवागओ 'यगिरिसिहरे चडिओ सवओ पव्वयं पासित्ता पमुईओ चित्ते चित्तेउ माढत्तो जिणपासायं कारेमि ताव अचलेसर गुहावासिणो जोई जंगम तावस सन्नासिणो माहण प्पमुहा दुमिच्छत्तिणो मिलिऊण विमलसाह दंडनायग समीवं आढत्ता एवं वयासी भो विमल तुह्माणं इत्य तित्थं नत्थि अम्हाणं तित्थं कुलपरंपरया तं वट्टई अओ इहेव तव जिणपासायं रचयं नदेमो तओ विमलो विलरको जाओ अव्वुयगिरि सिहरतलहट्टीए कासदहगामे समागओ जत्थ वटूमाणसूरि समोसरिओ तत्थेव गुरुं विहिणा वंदिऊण एवं वयासी भयवं इहेव पव्वए अम्हाणं तित्थं जिणपडिमारूवं वई. ति वा नवा तओ गुरुणा भणियं वच्छ देवया आराहणेणं सव्वं जाणिजइ छउमत्था छहं जाणंति तओ तेण विमलेण पत्थणाकया किंबहुणा वटुमाणसूरिहि छम्मासी तवं कयं तओ धरणिंदो आगओ गुरुणा कहियं भोधरणिंदा सूरिमंत्त अहिछायगा चउसटि देवया संति ताण मज्झे एगावि नागया न किंचि कहियं किं कारणं धरणिदेणुत्तं भयवं तुम्हाणं सूरिमंत्तस्स अक्खरं वीसरियं असुह भावाओ देवया नागच्छंति अहं तव बलेण आगओ गुरुणा वृत्तं भो महाभाग पुव्वं सूरि मंत्त सुद्धं करेहि पच्छा अनं कजं कहिस्सामित्ति धरणिदेणुत्तं भगवन् मम सतीनस्थि सूरिमंत्तक्खरस्सअसुद्धिसुद्धिं काउं तित्थगर विणा कस्सवि सत्ती नत्थि तो सूरिणा सूरिमंत्तस्स गोलओ धरणिंदस्स समप्पिओ तेण महाविदेहखित्ते सीमधरसामिपासेनीओ तित्थगरेण सूरिमंत्तो सुद्धो कओ तओ धरणिंदेण सूरिमंत गो. For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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