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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ लओ सूरिणं समप्पिओ तओ वारत्तय सूरिमंत्त समरणेण सव्वे अहिट्ठायगा देवा पञ्चक्खीभूया तओ गुरुणा पुट्ठा विमलदंडनायगो अह्माणं पुच्छइ अव्वुयगिरिसिहरे जिणपडिमारूवं तित्थं अच्छइ नवा तओ तेहिं भणियं अव्वुयादेवी पासओ वामभागे अदबुदआदिनाहस्स पडिमा वइ अखंडरकयसत्थियस्स उवरि चउसर पुप्फमाला जत्थदीसइ तत्थ खणियन्वं इइ देवया वयणं सुच्चा गुरुणा विमलसावयस्स पुरओ कहियं तेण तहेव कयं पडिमानिग्गया विमलेण सव्वे पासंडिणो आहृया दिट्ठा जिणपडिमा सामवयणा जाया पासायं काउमारद्धं विमलेण, पासंडेहिं भणियं, अह्माणं भूमिदव्वं देहि तओ विमलेण भूमी दव्वेहिं पूरिऊण पासायं कयं वट्टमाणसूरीहिं तित्थंपइद्वियं न्हवण पूयाइ सव्वं कयं तओ पच्छागयकालेण मिच्छत्तिणो तस्साहिणा जाया, तओ वावण्णजिणालओ सोवन्नकलसधयसहिओ निम्म विओ विमलेण अठारसकोडी तेवनलरकसंखादव्वो लग्गो अज्ज वि अखंडो पासाओ दीसह इत्यादि इति अर्बुदाचलप्रबंध इस आबुतीर्थकों प्रगट करणेवाले श्रीवर्धमानसूरिजीसें अविच्छिन्न दुप्पसहसूरिपर्यंत जो संप्रदाय है, सो सर्वत्र बहुलताकरके, खरतरगच्छ, इसनामसें इसजगतमे महसूर है, और श्रीउद्योतनसूरिजी श्रीसिद्धक्षेत्रमें सिद्धवडनीचे ८३ शिष्योंकों आचार्यपद देकर अपणा अल्पायु जाणके वहांहि अणसणकर समाधिसें वर्गगये, और ८३ तयांसी शिष्योंकों वडवृक्षनीचे आचार्यपद दिया, इस्स कारणसे वडगच्छकी स्थापना हुइ, महाप्रभाविक हूवे, तिस्से अपणे अपणे गच्छनामसे प्रसिद्ध हूवे, और सामान्यप्रकारसें तयांसीयोंकाहि बडगच्छ कहा जावे है, परन्तु वादमें अलग अलग अपने नामसें प्रसिद्धि पाये, और उन ८३ तयांसीयोंमें बडे श्रीसर्वदेवसूरिजी थे, वैहि विशेषकर, वडगछ, इस नामसें प्रसिद्ध हुवे हैं ऐसा संभव है, और श्रीउद्योतनसूरिजी श्रीसर्वदेवसूरिजी और श्रीदेवसूरिजी आदि श्रीमुनिरत्नसूरिजी पर्यंत अनुक्रमसें जो पाटपरम्परा है, सो वडगच्छ इसनामसें प्रसिद्ध है, और यह गच्छ, निग्रन्थ, कोटिक, चन्द्र, वनवासी, सुविहितपक्ष, वडगच्छ इन नामोंसें प्रसिद्ध है, और कहा जाता है, और यथार्थरूपसे तो श्रीमुनिरत्नसूरिजीके आगे पाटपरम्परा नहिं चली, विच्छेद गइ ऐसा प्रायें संभवे है, और कहा जावेहै कि मुनिरत्नसूरिजी आगे वडगच्छ संप्रदाय श्रीचित्रवालगच्छमें जामिलि है, इस्सें महातपाविरुदधारक श्रीजगचन्द्रसूरिजीसें लेकर वडगच्छकी पाटपरम्परा लिखि जावेहै, और वडगच्छकी पावलिमेंभी इसी. For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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