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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ५ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । ३३ परन्तु अपनी माताके ऊपर हाथ न उठा । उसे दण्ड देनेमें अपने हृदयको कष्ट न दे । किये हुए कामके लिये मन ही मन उसे जलने भुनने दे । ईश्वरके भरोसे उसे छोड़ दे । वही उसका उचित न्याय करेगा । अच्छा, अब मैं जाता हूँ । देखो, जुगनूकी चमक फीकी हो चली, इससे जान पड़ता है कि भगवान् सूर्यनारायण क्षितिजके समीप पहुँच गये हैं । परमात्मा तेरी रक्षा करे ! मुझे भूल मत जाना । अब मैं जाता हूँ । ( जाता है। ) जयन्त - हे स्वर्गस्थ देवदूतो ! हे भूतलस्थ अनन्त जीवो ! अनर्थ ! ! ! हृदय ! और हे पातालस्थ दैत्य दानवो ! हा ! ! कैसा धीरज धर ! नाड़ियो ! एक दमे ढीली न पड़ जाओ - थोड़ी देर मुझे सम्भाले रहो ! क्या ? तुझे न भुला दूँ ? रे अभागे पिशाच ! यह माथा जबतक ठिकानेपर है, तबतक क्या मैं तुझे भूल सकता हूं? तेरी याद रक्खूं ? बचपनसे परिश्रम करके इस माथेमें एकत्रित की हुई सारी बातें निकालकर तुझे स्थान दूंगा । फिर भूलना भुलाना कैसा ? अरी दुष्टे ! तुझसे यह घोर कर्म कैसे हुआ ? रे चाण्डाल ! तूने यह क्या किया ? 'पेट में छुरी मुहमें राम राम' वाले मनुष्य कैसे होते हैं, इसका मुझे आज अच्छी तरह परिचय हो गया । मुझे पूर्ण विश्वास है कि कमसे कम इस बलभद्र देशमें ऐसे नीचोंकी कमी नहीं है । चाचाजी ! याद रखिये, आपके किये हुए कामके इतिहासका अक्षर अक्षर मेरे अन्तःकरणमें खुदा हुआ है । क्या ? उसने क्या कहा था ? " परमात्मा तेरी रक्षा करे ! मुझे भूल मत जाना " । रे पिशाच ! मैं सौगन्छ खाता हूं - तुझे कभी न भूलूंगा । · वीर, विशा०- ( भीतरस ) महाराज ! महाराज ! For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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