SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ५] बलभद्रदेशका राजकुमार । बुरा ही होता है । पर यह अत्यन्त घोर और कठोरतासे किया हुआ खून है । जयन्त-बोल बोल, जल्दी बोल । निस नरपिशाचने उनका खून किया हो उसका नाम बता दे । मैं अभी शेरको भाँति झपट कर उसके कलेजेका खून पाऊँगा। ___भूत-तेरी बातोंसे जान पड़ता है कि तेरे हाथों कुछ हो सकेगा। यदि यह काम तेरे हाथों न हुआ तो मैं तुझे अपने वार्यका न मानूंगा । अस्तु, जयन्त, सुन । मेरी मृत्युके विषयमें यह गप उड़ाई गई है कि जब मैं अपने वागमें सोया हुआ था तब एक काले सर्पने मुझे डस लिया; और उसीसे मेरी मृत्यु हुई । मेरी मृत्युके विषयमें इसी बनावटी बातसे बलभद्र देशकी सारी प्रजाके कान भरे गये हैं । परन्तु, जिस सर्पने तेरे पिताको डसा है वह सर्प इस समय बलभद्रकी राजगद्दीपर बिराजमान है। __ जयन्त-क्या ? मेरे चाचाजी ? हे भविष्यवादिनी आत्मा ! तू धन्य है ! भूत-हाँ, वही, वही तेरा व्यभिचारी चाचा ! वही जाराधम नरपशु ! उसीने मेरी नेक रानीको अपनी मीठी २ बातोंके जालमें 'फँसा लिया; और जारकर्म करानेमें प्रवृत्त किया । जयन्त, क्या यह नीचता और विश्वासघात नहीं है ? विवाहके समय तेरी माके पास जो मैंने सौगन्द खाई थी-प्रण किया था, उसका मैंने कभी भंग नहीं किया । तो भी उसने मुझे त्याग दिया । और त्याग भी किस लिये दिया ? उस दुराचारी नरपशुकी बातोपर मोहित हो उसके साथ व्याभिचार करनेके लिये । परन्तु जो स्त्री सच्ची पतिव्रता है उसके For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy