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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० जयन्त [ अंक १ भूत - मेरे लिये दुःख करनेका यह अवसर नहीं है; किन्तु मैं तुझसे जो कुछ कहूँगा उसे ध्यानपूर्वक सुन । जयन्न — बोल, मैं सुननेके लिये तैय्यार हूँ । www. kobatirth.org भूत - मेरी बात सुन लेनेपर तुझे उसका बदला लेनेके लिये भी तैय्यार रहना होगा | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त क्या ? बदला ? भूत - हाँ, बदला – बदला | मैं तेरे पिताकी आत्मा हूँ। पिछले जन्ममें किये हुए पापोंके लिये मुझे यह दण्ड हुआ है कि जब तक मेरे घोर पाप जलकर भस्म न हो जाये तब तक मुझे दिनभर आगमें पैठकर रहना होगा, और रात में बाहर निकलना होगा । हम लोगोंको इस पिशाच योनिमें रहकर जो जो कष्ट उठाने पड़ते हैं उनमें से किसी साधारण कष्टका भी यदि तेरे सामने वर्णन करूँ तो दुःखसे तेरी छाती फट जाय; डरके मारे तेरा खून जम जाय, क्रोधके मारे तेरी आखें फूट जायँ, चीटीकी गाँठ टूटकर उसके रोम रोम स्याही के काटोंकी तरह खड़े हो जायँ । परन्तु हम लोगोंको इस बातकी सख्त मनाई है कि उस कारागारकी एक बातमी रक्त मांस वाले जीवोंके कानोंतक न पहुंचाई जावे । अस्तु, यदि तूने अपने पिताको कभी प्यार किया हो तो मेरी बातोंपर ध्यान दे । जयन्त - हा ! परमेश्वर ! L ले - - अत्यन्त भयङ्कर और अत्यन्त दुष्टतासे किये हुए उसके 4 भूतखूनका वदला जयन्त - क्या खून ! भूत-हाँ, खून ! खून ! चाहे वह कैसा ही क्यों न हो - खून For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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