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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ५] बलभद्रदेशका राजकुमार २९ ( हाथ छुड़ा लेता है । ) अगर अब मुझे कोई रोकेगा तो याद रक्खो, यही तलवार उसका काम तमाम करेगी । बस, अब सीधी राहते तुम लोग यहाँ से चल दो । चल रे पिशाच, आगे आगे चल, मैं तेरे पीछे पीछे आता हूँ । (भूत और नयन्त जाते हैं। ) विशा० - इसका दिमाग बिगड़ गया है । वीर. - ऐसे अवसरपर इनकी आज्ञा पालन करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है । चलो चलो, हम भी उनके पीछे हो लें । विशा० - चलो चलें । न जाने इसका क्या परिणाम होगा । बीर०—- इस बलभद्र देशमें कोई खराबी अवश्य हुई है । विशा०—- परमात्मा सबका पार लगाने वाला है । बीर० -- चलो चलें, यह ठहरनेका अवसर नहीं है । ( जाते हैं । ) पाँचवाँ दृश्य । स्थान —— मैदानका दूसरा हिस्सा -:0: भूत और जयन्त प्रवेश करते हैं । जयन्त - तू मुझे कहाँ ले जायगा ? बोल, अब मैं आगे नहीं बहूँगा । भूत--अच्छा, सुन | जयन्त - हाँ, सुनता हूँ । भूत- - समय बहुत कम है । थोड़ी ही देर में मुझे दहकती हुई. गन्धककी भयानक ज्वाला में जाकर बैठना होगा | जयन्त - हाय ! हाय ! कैसी भयङ्कर दशा ! For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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