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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त [अंक १ विशा०-जरासी बात भी मनको बेचैन कर देती है । गौरवगरिमाके शिखरपर चढ़े रोमकपत्तनमें महापराक्रमी सर्वञ्जयकी क्रूर हत्यासे पहिले गड़े मुर्दे अपनी अपनी कन छोड़कर भाग गए । और कमनबन्द मुर्दे वहांकी गलियोंमें चीख मारते हुए इधर उधर भटकने लगे थे। इसीतरह पुच्छलतारोंका जलता हुआ सिलसिला आकाशमें दिखाई देने लगा था। रक्तकी ओस गिरती थी । सूर्य में भयङ्कर कालिमा नज़र आने लगी थी । सुधा बरसानेवाले और समुद्रपर हुकूमत करनेवाले चन्द्रमाको ग्रहणने इसतरह ग्रस लिया था, मानो चन्द्रमा सदाके लिये अस्त ही हुआ चाहता है । हमारे देशमें भी इसी तरह अमंगलकी सूचनाएं हो रही हैं । और हालमें भकाश और पृथ्वीपर जो जो घटनाएं हुई हैं, उनसे यही सन्देह होता है कि हमारे देश और प्रजापर कोई बड़ा भारी संकट आने वाला है। पर ठहरो, देखो बह सूरत फिर आ रही है। - (भूतका प्रवेश) चाहे जो हो मैं उसे अवश्य रोकूगा । ठहर रे पिशाच ! अगर तू किसी तरहकी आवाज़ निकाल सकता है या बोली बोल सकता है, तो बोल । अगर तू कोई अच्छा काम किया चाहता है, जिससे तेरा लाभ और मेरा गौरव हो, तो बता । अगर तू अपने देशकी भावी विपद जानता है, जो पहले मालूम होनेसे टल सकती हो, तो कह दे । या अगर तूने जीते जी अन्याय अत्याचार कर धन बटोर जमीनमें गाड़ रक्खा हो, जिसके लिये लोग कहते हैं कि तुम लोग यहां भटका करते हो, तो बता । ठहर और बताकर.........। वीरसेन, पकड़ो उसे । (मुर्गा बांग देता है।) For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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