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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार। क्या ज़रूरत है ? इसतरह दिन रात पसीना बहाकर क्या होनेवाला है,इसका रहस्य कोई बतला सकता है ? विशा०–हां, मैं कुछ कुछ जानता हूं । हो न हो, अफ़वाह ऐसी है। तुम जानते हो कि हमारे स्वर्गवासी महाराज, जिनकी सूरतकी नक़ल अभी नज़र आई. थी, और शाकद्वीपके महाराज युधाजितके बीच अभिमानवश द्वन्द्वयुद्ध हुआ था जिसमें हमारे महाराजने, जिनकी वीरताकी सारी दुनिया प्रशंसा करती है, उन युधाजितको मार डाला । द्वन्द्वयुद्धके पहिले यह निश्चय हो चुका था कि यदि युधाजित हारे तो उनकी सारी ज़मीन हमारे महाराज ले लें ; और अगर हमारे महाराज हारे तो उनकी आधी ज़मीनके वे अधिकारी हो । इसतरह द्वन्द्वयुद्धके नियमानुसार युधाजितकी सारी जमीन हमारे महाराजके हाथ आई । अब, महाराज यधाजितके एक नौजवान लड़का है, जो बड़ा ही हठी और क्रोधी है। उसने शाकद्वीपकी सीमापर वहांके लुटेरोंको रोज़की खूराकपर इकट्ठा किया है ; और वह चाहता है कि बेबस करके हमलोगोंसे अपने पिताकी हारी हुई ज़मीन छीन ले । इसी विपदको दूर करनेके लिये ये सब तैयारियाँ हैं । मेरी समझमें तो हमारे इस पहरे, जङ्गी बन्दोबस्त और देशमें एकाएक हलचल फैल जानेका यही कारण है। भीम०-मुझे भी और दूसरा कोई कारण नहीं दिखाई देता । ऐसे अवसरपर हमलोगोंके पहरा देते हुए हमोर स्वर्गवासी महाराजकी शकलका सिपाहियाने बानेमें हमारे पाससे निकल जाना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है । क्योंकि बलभद्रदेश और शाकद्वीपके बीच आजतक जेि युद्ध हुए, उनकी जड़ वे ही थे और अब हानेवालेकी भी वे ही हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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