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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार। वीर०-क्या बी भोंक दूं ? विशा.- हां, भोंक दो,अगर न खड़ा रहे । भीम-पर वह है कहाँ ? विशा०---अजी यह आया । वीर०-नहीं, निकल गया । (भूत जाता है । ) ऐसी भव्य आकृतिके साथ मारपीटके लिये तैयार हो जाना हमारे लिये बिलकुल अनुचित था । क्योंकि, यह तो वायुके समान अभेद्य है । हमारे वारोंसे उसका क्या बिगड़ता ?-उल्टी हमारी ही हसी होती। भीम-वह कुछ बोला ही चाहता था कि इतनेमें मुर्गा बांग देने लगा। विशा०-और उसे सुनते ही किसी अपराधीकी तरह वह भाग गया । मैंने सुना था कि सबेरा होते ही मुर्गे गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाते हैं; जिसे सुनते ही इधर उधर भटकनेवाले भूत प्रेत अपनी अपनी खोहमें जा छिपते हैं । वही बात आज अपनी आँखों देखी। वीर०-मुर्गके बांग देते ही वह गायब हो गया ! लोग कहते हैं कि निरभ्र और प्रशान्त पौष मासके शुक्ल पक्षमें मुर्गे रातभर बांग दिया करते हैं । इसलिये उन दिनों भूतप्रेतोंकी बाहर निकलनेकी हिम्मत नहीं पड़ती। तारे नहीं टूटते । परियोंकी मोहिनी काम नहीं करती। और जादूगरनीका जादूटोना भी नहीं चलता।। विशा.-मैंने भी ऐसा ही सुना है। और इसमें मेरा कुछ विश्वास भी है। परन्तु, देखो, सबेरा होगया । पूर्वकी ओर भगवान् सूर्यनारायणका उदय होकर उनके किरणोंसे ओससे भीगे हुए. पर्वत For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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