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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार। १५७ हमें यह सीखना चाहिये कि हमारे काम करनको दिशा चाहे कैसी. ही क्यों न हो-चाहे भली हो या बुरी—पर काम करानेवाली एक ईश्वरीय शक्ति होती है और वही हमारे कामको पूरा करती है। विशा०-इसमें क्या सन्देह है ? जयन्त-मैं अपने कमरेसे उठा और बदनमें चोगा लपेट अन्धेरेमें उन्हें ढूंढने लगा । टटोलते २ एकाएक उनके जेबमें रक्ने हुए खरीते पर ही मेरा हाथ जा पड़ा। बस तुरन्त ही वह खरीता ले चुपचाप मैं अपने कमरेमें लौट गया। मैंने उस समय यह विचार ही नहीं किया कि दूसरेके खरीतेको खोलना अच्छा है या बुरा, किन्तु खरीता खोल एकदम पढ़डाला । हाः ! विशालाक्ष ! तुम्हारा गजा कैसा नीच है ! उस खरीतेमें उसकी एक कठोर आज्ञा थी; और साथ ही साथ उसके बड़े २ कारण भी दिखलाये गये थे और लिखा था कि बलभद्र और श्वेतद्वीप दोनोंकी इसमें भलाई है । रे नीच डाकू ! क्या मेरी जानसे तुझे इतना डर है जो तूने यह कठोर आज्ञा दे दी कि खरीता देखते ही बिना विलम्ब किये, नहीं, तलवारको तेज़ करनेमें भी समय न बिताकर, जयन्त का सिर फौरन् काट डालो ? विशा-क्या यह सम्भव है ! जयन्त--लो, यह खरीता लो; और फुर्सतके समय इसे पढ़ डालना । अच्छा, और सुनोगे, फिर मैंने क्या किया ! विशा-हां हां, कहिये । जयन्त-इस तरह मैं उन नीचोंके फंदेमें फंस चुका था । मैं अपनी जान बचाने का उपाय सोच ही रहा था कि एकाएक मुझे एक उपाय सूझा । बस, उसी दस बैठकर मैंने एक मसविदा तैयार किया; For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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