________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जयन्त
[अंक ५ पलट नहीं सकता। स्वभाव या प्रकृत्तिमें फेर बदल करनेकी चेष्टा करना हो वृथा है।
(जाता है) रा-भाई विशालाक्ष ! कृपा करके तुम जाओ और उसपर खूब निगाह रक्खो । (विशालाक्ष जाता है) ( चन्द्रसेनसे ) भूल गये, कल रातको हमारी तुम्हारी क्या बातें हुई थीं ? ज़रा धीरज रखो, थोड़ी देरमें तो सारा काम बन आता है । अच्छा, प्रिये विषये ! अपने बेटेको कुछ देरतक सम्भाली रहो। कमलाका ऐसा स्मारक किया जायगा जिसमें सृष्टिके अन्ततक उसकी याद बनी रहे । अब ये सारी बलाएँ टलकर शान्तता होनेमें थोड़ी ही देर है, परन्तु तबतक हमें बड़े धीरज और सावधानीसे काम करना चाहिये । (जाते हैं)
दूसरा दृश्य । स्थान-किलेमें एक बड़ा कमरा ।
जयन्त और विशालाक्ष प्रवेश करते हैं। जयन्त-इस विषयमें बहुत बातें हो चुकीं; अब उस विषयकी बतें सुनाता हूँ। तुम्हें याद है, उस समय मेरी क्या हालत थी ? "विशा-क्यों नहीं, महाराज ? सब याद है।
जयन्त-उस समय मेरे पेटमें इतनी खलबली मची थी और मन इतना बेचैन था कि रातमें मुझे नींद भी न आती थी। मालूम होता था कि मेरी हालत कैदियोंसे भी बदतर हो गई है। पर, उतावलेपनकी भी धन्य है ! विशालाक्ष ! जब मनुष्यकी कोई युक्ति काम नहीं करती तब उतावलापन और अविचारसे ही बहुधा सफलता प्राप्त होती है। इससे
For Private And Personal Use Only