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१५८ जयन्त
[ ५ फिर साफ और अच्छे अक्षरों में उसकी नकल कर डाली। किसी समय मेरा अक्षर बहुत सुन्दर था, परन्तु यहांके बड़े आदमी तो अच्छा अक्षर लिखना कम दर्जेके आदमियोंका काम समझते हैं। इसलिये उनकी रेखा देखी मैंने भी अपना अक्षर विगाड़नेकी बहुत चेष्टा की थी । पर, भाई, इस समय तो मेरा पही अच्छा अक्षर काम आया । अच्चा, यह भी बतला हूँ कि उसमें क्या क्या बातें लिखी थीं ?
विशा०-~-हा हा, महारान, बतला दीजिये।
जयन्त-राजाकी ओरसे श्वतेद्वीपके राजाको लिखा कि इसे बहुत जरूरी पत्र समझना ; और चकि श्वेतद्वीपराज्य बलभद्र के अधीन राज्यों में गिना जाता है, चूंकि दोनों राज्योंका परस्पर-स्नेह सम्बन्ध बढ़ना आवश्वक है, चूंकि दोनों राज्यों में सुख और शान्ति बनाये रखना हम दोनोंका कर्तव्य है, और चूंकि दोनों राज्योंमें एकता बनाये रखना हमारे लिये सुखकर है, इसी तरह और भी कई 'चकि' लिखकर बड़े बड़े महत्वके कारण दिखलाते हुए अन्तमें यह लिखा था कि इस पत्रको पढ़ते ही, इस विषयमें ज़रा भी शंका कुशंका न कर-नहीं, ईश्वरकी अन्तिम प्रार्थना करनेको भी समय न देकर-पत्रवाहकको एक दम मार डालना ।
विशा०-उसपर मुहर कैसे हुई ?
जयन्त-अजी, परमात्माकी इच्छा होती है तो सब कुछ ठीक होता है । मेरे पिताजीकी मुहर मेरे जेबमें ही पड़ी थी । राज्यकी मुहरका और उस मुहरका साँचा एक ही था। बस, फिर पत्रपर नीचे चाचाजीकी दस्तखत करके खरीतेमें उसे बन्दकर ऊपरसे मुहर लगा असली खरीतेकी जगह वह नकली खरीता चुपचाप रख दिया। फिर दूसरे ही दिन हम लोगोंसे और समुन्दरी डाकुओंसे युद्ध हुआ। और
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