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दृश्य ४] बलभद्रदेशका राजकुमार । १०७ उसे ध्यानसे सुनो । मुझे विश्वास है कि तुम्हारा हृदय अभी पत्थरसा कठोर नहीं बन गया है और न उसपर दुर्व्यसनोंका इतना गहरा असर ही पड़ा है कि तुम विवेकका कोई ख्याल न करोगी।
रानी--अयन्त ! मैंने ऐसा कौनसा बुरा काम किया कि तुम मुझे इतनी कठोर बातें सुनाते हो। . ___जयन्त-तूने ? तूने ही तो सारा सत्यानाश किया; और उल्टे मुझसे ही पूछ रही हो कि 'मैंने ऐसा कौनसा बुरा काम किया' ? धिक्कार है तेरे जीवनको ! तुझे तो चुल्लू भर पानीमें डूब मरना चाहिये । तूने ऐसा काम किया है कि जिससे सारी कुलीन स्त्रियोंको लजित होकर सिर झुकाना पड़ता है । तूने ऐसा काम किया है कि जिससे स्त्रियोंका सतीधर्म लोगों को निरा पाखण्ड जान पड़ता है । तूने ऐसा काम किया है कि जिससे पति पत्नीके प्रेमकी पवित्रता नष्ट होकर उसे भयङ्कररूप आगया है; और विवाह समयकी सौगन्दें जुआरियोंकी सौगन्हें जान पड़ती हैं।
आह ! तेरे और क्या क्या अपराध बताऊँ ! तूने वह काम किया है जिससे विवाह और धर्मकी पवित्रता जाती रही ! उनमें अब कोई अर्थ न रहा ! तेरे इस पापकर्मको देखकर परमात्माने रुद्र रूप धारण किया है; और सारी सृष्टि प्रलयके भयसे थर थर कांप रही है। - रानी-मैंने ऐसा कौनसा अपराध किया है जिससे संसारमें इतनी खलबली मच गयी ?
.. जयन्त-यह चित्र देख और इस चित्रको भी देख । दोनों भाइयोंकी ये हूबहू तसबीरे हैं ! देख, इस ललाट की तेजस्विता, ये कृष्ण केशपाश, यह मर्दकी छाती, ये तेज:पुंज नेत्र, यह रवाय, यह बाना और यह तेजस्विता ! मानो गगनचुंवित शैलाशरवरपर
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