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जैन विवाह विधि
हस्तमिलाप का मंत्र
ॐ अर्हं आत्मासि जोवेऽसि समकालोऽसि समचित्तोऽसि ससमकर्माऽसि समाश्रयोऽसि समदेहोऽसि समक्रियोऽसि समस्नोहोऽसि समचेष्टितोऽसि समाभिलाषोऽस्ति समेच्छोऽसि समप्रमोदोऽसि समविषादोऽसि समावस्थोऽसि समनिमित्तोऽसि समवचा असि समक्षुत्तृष्णोऽसि समगयोऽसि समागमोऽसि समविहारोऽसि समविषयोऽसि समशब्दोऽसि समरूपोऽसि समरसोऽसि समगंधोऽसि समस्पर्शोऽसि समेन्द्रियो ऽसि समाश्रयोऽसि समसंवरोऽसि समबंधोऽसि समनिर्जरोऽसि तदेही एकत्वमिदानीं अहं ॐ ।
यह बोलने के बाद संपुट किये हुए वर और कन्या के हाथों पर वर के माता पिता दूध और जल की धार दिलाते हैं और जल्दी ही हाथ छुटे कराते हैं, वर कन्या के माता पिता वर कन्या के पास स्वस्तिवाचन (यानी पानी के लोटे पर श्रीफल पर रख कर उसकी पूजा) कराते है ।
बास की चवरी बनाकर उसमें मिट्टी के रंगे हुए वर बहेडे एक दूसरे पर रखे, मंडप के मुहुर्त के अधिकार में पेस्तर दिये हुए वेदिप्रतिष्ठा का मंत्र पढ कर चारों दिशा में अक्षत (चावल) फिकवावें, तोरण प्रतिष्ठा का मंत्र पढकर दक्षिण तरफ तोरण बंधावे, वर कन्या को उस द्वार से चवरी में प्रवेश कराकर बायीं व दाहिनी तरफ बिठावें चवरी के बीच में अग्निकुंड बनाकर क्रियाकारक नीचे मुजब मंत्र पढे ।
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अग्नि स्थापना का मंत्र
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हः नमोऽग्नये नमो बृहद्भानवे नमोऽनन्ततेजसे नमोऽनन्तवीर्याय नमोऽनंतगुणाय नमो हिरण्यतेजसे नमः छागवाहनाय