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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य हेमचन्द्रसूर और उनका साहित्य इस देवी की कुक्षि से एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ । वह समय विक्रम संवत् १९४९ कार्तिक की शुक्ला पूर्णिमा की रात्रि का था । बालक के अनुपम लावण्य और श्रेष्ठ लक्षणों से इसका नाम 'चंगदेव'" रक्खा गया । यही 'चंगदेव' अपने हेमचन्द्राचार्य हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'ater farala के होत चीकने पात' के अनुसार चंगदेव के सामुद्रिक लक्षण लावण्य और गुण उत्तम प्रकार के थे । माता पिता के योग्य लालन पालन से २१९ प्राचीन जैनलेखसंग्रह द्वितीय भाग में लेखांक ४१०-४८३ आदि । करीब एकादशवीं शताब्दी से यह जाति मोढेरा से फैल कर गुजरात, मारवाड, मेवाड और मालवादि देशों में गई है । मोहपराजयनाटक के कर्ता अजयपाल राजा के मन्त्री 'यशःपाल' भी इसी मोढ जातिके थे । वर्तमान में महात्मा गांधीजी भी मोढ हैं । अठारहवीं शताब्दी से इस जाति के लोग व्यवहारिक तकलीफों से जैनधर्म में से निकल कर अन्य धर्मों में जाने लगे हैं । कुछ लोग दिगम्बर जैनी भी हुए हैं । देखो ''जैनधातुप्रतिमा लेखसंग्रह ' प्रथम भाग श्री बुद्धिसागर सूरिजी कृत प्रस्तावना कुमारपाल प्रतिबोध में 'चच्च' लिखा है | प्रतिबोध में 'चाहिणी' लिखा है । १ - प्रभावक चरित्र में 'चाचिग' का नाम 'चाच' और माता का नाम कुमारपाल For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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