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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ आचार्य हेमचन्द्रसूरी और उनका साहित्य देश में 'धंधुका' नामक शहर में कई शताब्दिों से 'मोढजाति'२ का प्राबल्य है । इस जाति में 'चाचीग' नाम का एक व्यापारी था। उसकी धर्मपत्नी का नाम था 'पाहिनी' । वह सुशीला एवं जैनधर्म पर अनन्य श्रद्धालु थी । . ' १-यह गांव इस समय काठियावाड का है । और अहमदाबाद शहर से दक्षिण पश्चिम दिशा में ६० मील के फासले पर स्थित हैं । वहां अभी भी मोढ जाति के वैश्यों के सैकड़ों घर मौजूद हैं । वह ब्रिटिश तालुका का गांव है । प्रबन्ध चिन्तामगि में इस प्रदेश का नाम 'अर्धष्टाम' लिखा है। इस समय इस प्रदेश का नाम 'भाल' हैं कि, जो काठियावाड का एक भाग है। इस धंधुका के विषय में देखो सर. डब्ल्यु. डब्ल्यु. हंटर का इम्पीरियल गेझेटीयर ओर बाम्बे गेझेटीयर पुस्तक २ पृ० ३३४ ।। २-इस जाति की उत्पति 'मोढेरा' गांव से हुई । 'मोढेरा' अणहिल्लपुर पाटन से दक्षिण दिश में पहले बडा समृद्ध शहर था । वहां से असली निकले हुए ब्राह्मण आदि भी अपने को मोढ ब्राह्मण आदि बताते हैं। देखो फार्वस साहब को रासमाला । ३-पूर्वकाल में इस जाति का बहुत बडा भाग जैनधर्म को पालता था और इस जाति के कई एक लोग प्रसिद्ध जैन साधु साध्वी हुए हैं । सैकडों लोगों ने जैन मन्दिर व मूर्तिओं का निर्माग कर वाया है, ऐसा शिलालिखों से प्रतीत होता है । देखो श्रीयुत पूर्णचंद्र जी नाहर सम्पादित जैनलेखसंग्रह, खण्ड दूसरे में लेखांक १११८१३१३-१६१०-१६२४-१८००, और जिनविजय जी सम्पादित For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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