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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य 'चगदेव' करीब नौ वर्ष का हुआ । 'श्रीदेवचन्द्रसरि' नाम के आचार्य धन्धुकाग्राम पधारे। वे मोढ चैत्य के पास उपाश्रय में ठहरे थे । एक दिन 'पाहिनी' वहाँ मन्दिर में दर्शन करने आई । 'चंगदेव' आकर गुरु के आसन पर स्वयं बैठ गया। गुरु ने कहा कि "यह बालक हमारे पास रहकर अध्ययन करे तो बहुत बडा दिग्गज विद्वान् एवं प्रतापी होगा और संसार में महान् उपकार करेगा । कुल जाति की विश्व में कोर्ति फैलावेगा” । धंधुका के १-इन देवचन्द्रसूरि के गुरुओं की पूर्व परपरा इस प्रकार हैं:--दत्तसूरि-यशोभद्रसूरि-प्रद्युम्नसूरि-गुणसेनसूरि-देवचन्द्रसूरि । प्रभावक चरित्र में प्रद्युम्नसूरि को देवचन्द्रसूरि के गुरु लिखे हैं, परन्तु वस्तुतः दादा गुरु होने चाहिए। इनका कोटिक गण और चन्द्र या पूर्णतल, शाखा थी । देवचन्द्रसूरि भी अच्छे विद्वान् थे। इन्होंने ठाणाङ्गसूत्र पर वृत्ति और शांतिनाथ चरित्रादि ग्रन्थ बनाये हैं। कुमारपाल प्रतिबोध में श्रीदत्तसूरि से लेकर हेमचन्द्रसूरि तक का बहुत अच्छा परिचय दिया हैं । महावीरचरित्र की प्रशस्ति में भी हेमचन्द्र ने प्रद्युम्नसृरि को गुणसेन के शिष्य बतलाए हैं । २-गहिऊण वयं अवगाहिऊण नीसेससथारमत्थं । तित्थंकरोव्वएसो जणस्स उपयारओ होही ॥ कुमारपाल प्रतिवोध "अयं यदि क्षत्रियकुले जातस्तदा सार्वभोमचर्कवर्ती, यदि वणिगविप्रकुले जातस्तदा महामात्यः, चेदर्शनं-जैनसाधुत्वं" प्रतिपद्यते तदा युगप्रधान इव कलिकालेऽपि कृतयुगमवतारयति । प्रबन्ध चिन्तामणि, जिनवि० संपादित पृ० ८३ For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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