________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पाठ्यक्रम की समालोचना और मत
१९५
दिवाकर का न्यायावतार' (सटीक) रखा जाय तो अच्छा है। यह जैन न्याय का मौलिक छोटा ग्रन्थ है।
३ शास्त्रीय कक्षा न्याय वर्ष १ में अनेकान्तजयपताका भी रखी जाय तो अनेकान्त के विषय में बहुत सी ज्ञातव्य बातों का पढने वाले को ज्ञान हो सकता है । न्याय वर्ष २ में विशेपावश्यकभाष्य को ज्ञान प्रकरण (मूल) अथवा समन्तभद्राचार्य का युक्त्यनुशासनसटीक भी रखना आवश्यकीय मालूम होता है । गौतमसूत्र मूल भी रखना चाहिये । वर्ष ३ में वेदान्तसार के बदले वेदान्त परिभाषा रखनो विशेष लाभकारक है। इसी तीसरे वर्ष में सन्मतितक गाथा १ की टीका रखने से तर्कबुद्धि कर्कश होगी। वर्ष ४ न्याय में धर्मकीर्ति का न्याय बिन्दु ( बोद्धदर्शन के लिए) रखना आवश्यक है और नव्यन्याय की पद्धति जानने के लिए श्री यशोविजय जी का खण्डनखाद्य या न्यायालोक रखा जाय तो नव्यन्याय का मजा भी मिल जाय, क्योंकि ये दोनों जैनग्रन्थ नव्यन्याय के है। वर्ष चार में षट्दर्शन संग्रह रखा है। यह किसका बनाया हुआ है ? यह
१. वम्बई यूनीवर्सिटी ने इसको अपने पाठ्यक्रम में रखा है। जैन न्याय का यह प्राचीनतम ग्रन्थ है ।
२. नैयायिक दर्शन जानने के लिए “गौतमसूत्र' पढना जरूरी है। इस पर विश्वनाथ की वृत्ति बहुत सुन्दर है।
For Private and Personal Use Only