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पाठ्यक्रम की समालोचना और मत
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है | व्याकरण या साहित्य बर्ष २ में हैमलिङ्गानुशासन मूल मात्र कंठस्थ करना अच्छा है । इससे संस्कृत के प्रत्येक शब्द के लिङ्ग का व्यापक ज्ञान हो जाता है ।
साहित्य वर्ष ३ में वृत्तरत्नाकर के स्थान पर या विकल्प में छन्दोऽनुशासन अध्याय ४ तक मूल रखना और सत्य हरिश्चन्द्र' संस्कृत नाटक बढाना अच्छा है । इसी साल में जैनकुमारसंभव के भी तीन सर्ग हो जायं तो अच्छा है
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वर्ष ३ 'धर्म' में हैमप्राकृत व्याकरण संपूर्ण रखा ह। इस आठवें अध्याय के चार पाद में प्राकृत शोरसेन्यादि ५ भाषाओं का व्याकरण आजाता है | इसके कुल सूत्र १११९ हैं । अतः भेरा कहना है कि इसका एक ( प्रथम ) पाद दूसरे वर्ष में रखा जाय तो तीसरे वर्ष में २७१ सूत्रों का बोझ छात्रों पर कम हो जायगा और ज्ञान भी परिपक्व होगा ।
दूसरे वर्ष धर्म में सर्वार्थसिद्धि पढने के बाद तुलना करने के लिये श्री उमास्वातिकृत तत्त्वार्थभाग्य और उसकी टीका देखी जाय तो तत्त्वोर्थसूत्र के विषय में छात्रों का ज्ञान व्यापक हो जायगा ।
आप्तपरीक्षा के साथ न्याय वर्ष ३ में श्री सिद्धसेन
१ – यह जैन नाटक बहुत ही सुन्दर हैं ।
इसको प्रकाशित किया हैं ।
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निर्णयसागर ने