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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२६ www.kobatirth.org पाठ्यक्रम की समालोचना और मत だか Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खुलासा करना जरूरी है, क्योंकि ऐसे अनेक ग्रन्थ भिन्न भिन्न कर्तृक हैं । । व्याकरण वर्ष १ से ४ तक जो ग्रन्थ रखे हैं वे ग्रन्थ अभीतक छपे नहीं हों तो छात्रों को सुलभ्य नहीं हो सकते हैं । अतः जब तक यह नहीं छपे तब तक श्री हेमचन्द्र की सिद्धिहेमशब्दानुशासन वृहद्वृत्ति और न्याय पढाये जायँ । वर्ष ३ व्याकरण के साथ संस्कृत द्वयाश्रयकाव्य रखने से व्याकरण का ज्ञान खुलकर विकसित होगा। जैसे अजैन व्याकरण के लिये भट्टिकाव्य है वैसे जैनव्याकरण और गुजरात के इतिहास के लिये यह बहुत ही बढिया काव्य है । साहित्य वर्ष १ में गद्यचिन्त णणि एक ही ग्रन्थ है, वह कम है । अतः इसके साथ ही सौभाग्य अथवा किरातार्जुनीय के कुछ सर्ग रखने चाहिये और छन्दोनुशासन के शेष ४ अध्याय भी रखे जायँ । वर्ष में २ नाट्यदर्शन ( जैनाचार्यकृत ) की मूलकारिका और नलविलाम नाटक भी रखने से साहित्यविषयक छात्र की व्यापक बुद्धि होगी । वर्ष ३ में तिलकमंजरी का कुछ भाग और मुद्राराक्षस ( या हम्मीरमदमर्दन नाटक ) बढाना चाहिये । वर्ष ३ में काव्यानुशासन रखा है, वह किस का 'बनाया हुआ है ? यह निर्देश करना जरूरी है । क्यों कि काव्यानुशासन २ हैं एक तो छोटा साधारण है जो वागभट कविकृत है और दूसरा काव्यप्रकाश जैसा बडा For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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