SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ महाकवि वागभट के जैन ग्रन्थ की व्याख्या में गडबड स्वामी अन्तिम तीर्थकर थे। इससे भी जैन धर्म की प्राचीनता जानी जाती है बौद्ध धर्म पीछे से हुआ, यह बात निश्चिन है ।" यदि व्याख्याकार पण्डित ईश्वरीदत्त जी यह कहें कि जिनेन्द्र जिनेश्वर और वीतराग शब्द का पर्याय वाची बुद्ध और बुद्धदेव शब्द है । इसी लिए हमने जिनेन्द्रादि शब्दों की जगह बुद्ध और बुद्धदेव शब्द रखे हैं । यह भी उनका कहना ठीक नहीं, क्योंकि प्रसिद्ध अमरकोश में जिनेन्द्र जिनेश्वर और वीतराग ( जैन तीर्थंकर) के जो नाम आये हैं, उन नामों से बुद्ध और बुद्धदेव शब्द कहीं भी नहीं है। खुद बौद्धाचार्य मोग्गलान थेर नाम के विद्वान् ने जो 'अभीधानप्पदीपिका'" नाम का पाली भाषा का शब्द कोष बनाया है, उसमें भी ( खीणासवो, (त्व) ऽसरंवो (च ) वीतरागो, ( तथा ) sरहा ( प्रथम सर्ग १० वां लोक) का जैन तीर्थकरों के जो नाम आये हैं, उनमें भो बुद्ध और बुद्धदेव शब्द नहीं है । १. अन् जिनः पारगतस्त्रिकालवित्क्षीणा कर्मा परमेष्ट्यधीश्वरः । शंभुः स्वयम्भूर्भगवान् जगत्प्रभुस्तीयैकरस्तीथकरो जिनेश्वरः ॥ स्याद्वाद्यभयदसार्वाः सर्वज्ञः सर्वदर्शिकवलिनों । देवाधिदेवबोधिदपुरूषोत्तमवीतरागाप्ताः ॥ हेमकोष, प्रथम काण्ड श्लोक २४-२५ । २. यह पाली भाषा का कोष गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है और एक सिलोन के बौद्ध भिक्षुक का लिखा हुआ है For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy