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महाकवि वागभट के जैन ग्रन्थ की ब्याख्या में गडबड १७१
कवीन्द्र रवीन्द्र टागोर और श्रीयुत कन्नोमलजी एम० ए० सेशन जज्ज धौलपुर जैसे प्रसिद्ध पुराने विद्वानों ने भी इस कल्पना को निल मान कर जैन दर्शन एक स्वतन्त्र दर्शन है- किलो की शाखा या मेद नहीं है-ऐसी सर्वत्र उद्घोषण की है । देखिये
जनन के प्रसिद्ध विद्वान् डा० जेकोबी ने एक भाषण में यह कहा था कि
"In conclusion let me assert iny conviction that Jainism is an original system quite distinct and independent from all others and that, therefore it is of great importance for the study of philosophical thought and religious life in ancient India."
देशनेता लोकमान्य तिलक सन् १९०४ के दिसम्बर के अपने 'केसरी' पत्र में लिखते हैं कि- 'ग्रन्थों तथा सामाजिक व्याख्यानों से जाना जाता है, कि जैन धर्म अनादि है । यह विषय निर्विवाद तथा मतभेद रहित है । सुतरां
इस विषय में इतिहास के दृढ सबूत हैं, और निदान इस्वी . सन् से ५२६ वर्ष पहिले का तो जैन धर्म सिद्ध ही है ।
महावीर स्वामी जैन धर्म को पुनः प्रकाश में लाये' इस वात को आज २४०० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। बौद्ध धर्म की स्थापना से पहिले जैन धर्म फैल रहा था, यह बात विश्वास करने योग्य है । चौवीस तीर्थंकरों में महावीर
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