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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० महाकवि वाग्भट के जैन ग्रन्थ की व्याख्या में गडबड रक्षकः स जिनः बुद्धः यः युष्मान् पातु । वा० पृ० २१ स प्रसिद्ध जिनः बुद्धः जयति । वा० पृ० २२ यथा जिनः बुद्धः स्वामी अवलम्बनम्: यस्य तस्मै अर्हते तन्नामकसंप्रदायविशेषप्रवर्तकायनेमये तन्नाम्ने ।...... वा० पृ० २३ सज्ञान: सः प्रसिद्धः जिनरे बुद्धदेवः । वा० पृ० ९ जिनयातिः बुद्धः वः युष्मान् पातु । वा० पृ० ६३ जिनेन्द्र बुद्धदेवं नमत """ वा० पृष्ट ६५ जैनेश्वरी.....जिनेश्वरस्य बुद्धदेवस्य इदम् ( इयम् ) मूर्तिः कल्पलता इव ... ... । वा० पृ० ६७ ___अगर व्याख्यालेखक यह समझते हों कि जैन धर्म और बौद्ध धर्म एक है तो अब इस बुद्धिवाद के परीक्षक जमाने में यह समझना उनको भूल है, क्योंकि जननी के प्रसिद्ध २ विद्वान् डाक्टर याकोबी, डा० हर्डल, डा० ग्लालेनप और भारत के नेता लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, १. अरिष्ट नेमस्तु नेमिः वीरश्चरमतीर्थकृत् । महावीरो बर्द्धमानो देवार्यो ज्ञातनन्दनः ॥ हैमकोष प्रथम काण्ड श्लोक ३० । २. यहां पर संधि होकर जिनो होना चाहिये परन्तु पण्डित जी ने अपनी टीका में जहां जैसा २ शुद्ध या अशुद्ध लिखा है वैसे ही हम को यहां पर उतारा करना पडा हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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