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महाकवि वागभट के जैन ग्रन्थ को व्याख्या में गडवड : १७३ः
अगर पण्डित जी अपने बचाव के लिये यह भी कहें कि जिनेन्द्र, जिनेश्वर और वीतराग शब्द बुद्ध के पर्याय वाची है, जैसे घटके कलश आदि शब्द, तो यह भी कहना उनका यक्तिशून्य है । क्योंकि प्रसिद्ध अमर कोश' और बौद्धोंके अभिधानप्पदीपिका' कोश में जो बुद्ध भगवान् के नाम आये हैं उनमें कहीं भी जिनेन्द्रादि शब्द नहीं है । - पाठक लोग इस छोटी सी समालोचना के पढने से भली भांति समझ सकते है कि इस जैन ग्रन्थ की व्याख्या में पं० महाशय जी ने कितनी गडबड की है । मुझे लिखते हुए दुःख होता है कि हिन्दुस्तान के अनुचित सम्प्रदाय मोह से और जैनों की साहित्य के प्रति उपेक्षा से एक नहीं, अनेक प्राचीन ग्रन्थों में ऐसे लोगों ने गडबड करके अपने ग्रन्थ बना लिए हैं । परन्तु ध्यान रखना कि अब
सर्वज्ञः सुगनो बुद्धोधर्मराजस्तथागतः । समंतभद्रो भगवान्मारजिल्लोकजिज्जनः ।। षडभिज्ञो दशवलोऽद्वयवादी .. विनायकः । मुनीन्द्रः श्रीघन: शास्तामुनिः शक्यमुनिस्तु यः ॥ स शाक्यसिंहः सर्वार्थसिद्रिः शौद्धोदनिश्च सः । गौतमश्यार्कबन्धुश्व मायादेवीसुतश्च सः ॥ अमरकोष प्रथम श्लोक १३-१४-१५
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