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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड दृष्टि मांउवगढ पर पडो । उस वख्त यानी ईसा की तेरहवीं शताब्दी में मांडवगढ में परमार वंश की राजधानी थी । S म अतः वहाँ व्यापार, कला, विद्या की उन्नति के कई साधन परमार व थे। जो स्थान विद्या कला में राजा भोज के समय में धारा का था, वह अब मांडवगढ ने ले लिया था । वहाँ जैनों के एक लाख घर थे । जो लक्षाधीश और कोटीश प्रायः थे । पेथड कुटुम्बसहित व्यवसाय के लिए मांडवगढ चल कर पहुंचा। ___ मांडवगढ में पेथड के समय मालवा का परमारवंशीय जयसिंह देव राज्य करता था। वह विद्वान्-योग्य लोगों का सहायक और संग्राहक था। इसी कारण पेथड मांडवगढ आया । वहाँ पर व्यापार चलाया। दुकान खोली । नीति पूर्वक एक वोल और एक तोल से वह व्यापार करने लगा। ग्राहकों से मधुर योग्य व्यवहार करता था । अतः इसका व्यापार व यश बढता गया । दुकान पर ग्राहकों की भीड जमने लगो । 'उच्चैर्गच्छति नीचैश्च दशो' इस न्याय से हमेशा किसी को एकसी अवस्था नहीं रहती । सूर्य-चन्द्र का भी उदय के बाद अस्त और अस्त के पश्चात् उदय होना हम नजरों से देखते हैं ! पेथड के यहाँ एक ग्वालन घी बेचने आई। पेथड ने घी खरीदा । घी के बर्तन के नोचे एक चित्रावेल थी इससे वह घी का पात्र खाली करने पर भी फिर उतना ही भर जाता था । पेथड ने इसका महत्त्व समझकर उस For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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