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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ मंडपदुर्ग और अमात्य पेड लेने को कहा। उसने सरल भाव से बीम हजार टंक? ( उस जमाने में प्रसिद्ध एक सिक्के का नाम टंक था ) का नियम लेने को कहा । आचार्य सामुद्रिकशास्त्र व ज्योतिष के दिग्गज पंडित थे। उन्होंने पेथड के सुलक्षण और रेखाओं से निकट भविष्य में उसका धनाढ्य होने का अनुमान किया । अतः पेथड को पांचलाख टंक का नियम लेने का आचार्य ने उपदेश दिया। उनकी आज्ञा मानकर पेथड ने अधिक तृष्णा को रोकने के लिए यह नियम स्वीकार किया। यह कहना रह गया है कि पेथड की धर्मपत्नी का नाम पद्मनी था । बह गुण से भी पद्मनी थी। पेथड को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । उसका नाम झांझनकुमार रखा । “आत्मा वै जायते पुत्रः" के अनुसार वह भी प्रतापी चतुर व विद्वान् था । पेथड का गुजरान चलना भी विद्यापुर में दुष्कर हो गया तब विदेश जाने का उसने विचार किया। उसकी १ जैन ग्रन्थों में इस सिक्के का कई जगह उल्लेख मिलता है । इसको टंका भी कहते हैं । विन्सेन्ट, ए. स्मिथ कहते हैं यह दाम का पर्यायवाची है । पर 'केटलांग आफ दि इं डेया काइन्स इन दि बीटिश म्युझीयम्' में टंका दो प्रकार का लिखा है । एक छोटा और दूसरा बडा । बडे टंकका वजन ६४० ग्रेन और छोटे का ३२० ग्रेन बताया है । बडे का मूल्य दो दाम और छोटे का एक दाम । यहां पर बड़े टंक या टंका समझना चाहिये । . For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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