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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
ग्बालन से पात्र सहित घी खरीद लिया। ग्वालन को चित्रावेल का ज्ञान नहीं था इसलिए स्वल्प मूल्य में उसने बेच दिया। अब पेथड के भाग्य की दशा बदली। उसका घी का व्यापार जोरों से चलने लगा। थोडे ही समय में उसने लाखों रुपये कमा लिये। लक्ष्मी देवी प्रसन्न होती गई । "संपत् संपदमनुबध्नाति" न्याय से मांडवगढ में चारों ओर से उसकी लक्ष्मी बढने लगी। उसकी कीर्ति सर्वत्र फैल गई। कई प्रकार के व्यापार उद्योग उसके अधीन हो गए।
मंत्रीपद मांडवगढ़ में उस वक्त परभार वंश का राणा जयसिंहदेव राज्य करता था। वह प्रतापी और सत्पुरुषकी परीक्षा करने वाला था, सूर्यका तेज व कस्तूरी की खुशबो छिपी नहीं रहती है । पेथड की बुद्धिमत्ता-योग्यताने राजा के हृदयमें स्थान पाया। उसने ( राजाने ) पेथडको आग्रह कर मंत्रिपद दिया और पेथडके पुत्र झाँझनकुमारको वहाँ का कोतवाल बनाया।
___ ब्यापारी जीवन में से अब पेथडकुमार और उसके पुत्रने राज्यनीतिक्षेत्र में पदार्पण किया। बुद्धिशाली वीर
१ गुर्वावली श्लोक १७९ । चैत्यस्तोत्र श्लोक १ । रा. सुशील ने इस राजा का नाम विजयसिंहदेव लिखा है। यह संमत नहीं लगता है ।
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