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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
जमीन फलद्रूप है, आबोहवा सुन्दर है 1 इसीलिए अकबर बादशाह के उत्तराधिकारी जहाँगीर ने इस शहर को पसन्द किया था । राजधानी दिल्ली में होते हुए भी वह यहाँ चिरकाल तक रहता था । इसीलिए उक्त शहर में बादशाही महल मकानात भी खूब बन गये थे । व्यापार की दृष्टि से भी उस समय तक यह नगर तरक्की पर था । विदेशिों से कई यात्री यहां व्यापार-विद्या व विनोदार्थ आते थे । यहां का किला अभी तक इतना मजबूत है कि टूटता नहीं है । पत्थरसी मजबूत इसकी इटे है । जहांगीर ने उपदेश सुनने के लिए मांडवगढ के राजमान्य चन्दू, जो जनसंघ का अग्रणी था, से परिचय पाकर श्रीविजयदेव सूरि का सम्मानपूर्वक फर्मान युक्त अपने आदमी को भेजकर सत्तरहवी शताब्दी में यहाँ बुलाया था। आचार्य खंभात (गुजरात) से विहार कर (पैदल चल कर) आश्विन शुक्ल १३ को मंडपदुर्ग पहुंचे थे। दूसरे दिन तसवीरखाने में बादशाह से मिलकर आकर्षक उपदेश विजयदेवसूरि ने सुनाया । इसका वर्णन' हम परिशिष्ट नं. १ में देंगे।
बाण की कादम्बरी के ऊपर प्रसिद्ध टीका बनाने वाले श्रीभानुचन्द्र उपाध्याय को भी जहांगीर ने बुलाया
१ विजयदेव-माहात्म्य काव्य में इनका जीवन चरित्र है। यह ग्रन्थ इतिहास के उपयोग का है ।
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