________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मंडपदुर्ग और अमात्यः पेथड
पेथडकुमार का समय ईसा की तेरहवी शताब्दी है । वह नीमाड देश में नान्दुरी का रहने वाला था। उसका पिता धनकुबेर था । मांडवगढ में आकर पेथड़ ने व्यापार बढाकर व्यापारिओं में अग्रिमस्थान लिया । वीरता व कौशल्य से वह राणा जयसिंहदेव का प्रियमंत्री बना .) अपनी विशेषता से राजा और प्रजा का उसने खूब प्रेम प्राप्त किया । श्रीधर्मघोषसूरि का वह गुरु मानता था। उनके उपदेश से सवाकरोड रुपयों का उसने दान किया था। जैनधर्म का वह पोबन्ध था। उसने ८४ बड़े २ जैनमंदिर बन्यवाए । सात ज्ञान भंडार मुख्य २ शहरों में अपने खर्व से स्थापित किए । कई विद्वानों को आश्रय दिया । कर्णावती (गुजरात) के राजा सारंगदेव को इसने बहादुरी से हराया था। इसका पुत्र झांझन कुमार भी ऐसा ही पराक्रमी और यशस्वी था । पेथडकुमार व्यापारी विद्वान् व पूरा राजनीतिज्ञ था । मालवे के इतिहास में इसका महत्त्व का स्थान है ।
मंडपदुर्ग का विशेष परिचय मध्यकाल के मालवे का जो ऐतिहासिक स्थान नगर थे, उनमें मंडपदुर्ग भी एक था । यह चारों ओर पहाडों और गहन झाडियों से परिवेष्टित है । इसका किला मजबूत था जो बडे-बडे किलों की गिनती में गिना जाता था । यहाँ की
१ इसीलिए इसका नाम मंडपदुर्ग और मण्डपाचल है । नीतिशतक में धनद ने दुर्गकाण्डे इस नगरका विशेषण लिखा है।
For Private and Personal Use Only