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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ मह कवि शोभन और उनका काव्य तत्त्वों का ज्ञाता था । जैन और बौद्ध तत्वों में प्रवीण तथा साहित्य-शास्त्रों में अद्वितीय विद्वान् होने के कारण कवियों में उदाहरणभूत था । 'कुमारावस्था (युवावस्था) में शी शोभन ने कामदेव को परास्त कर पाप का व्यापार त्याग अहिंसा धर्म का पूर्णरूपेण पालन किया था ।" शोभन मुनि का गृहस्थ कुटुम्ब शोभन के दादा का नाम 'देवर्षि२ था। ये बडे धनी तथा पण्डित थे । जाति के ब्राह्मण थे। उनका एक पुत्र सर्वदेव था । यह बहुत बडा विद्वान् कला-प्रिय, तथा महाकवि था। सर्वदेव के दो पुत्र थे। ज्येष्ठ का नाम था धनपाल और छोटे का नाम था शोभन । यही शोभन इस लेस्व के चरित्रनायक है। सर्वदेव की एक पुत्री भी थी जिसका नाम सुन्दरी था । वह भी पंडिता थी। अपनी बहिन सुन्दरी के लिए कवि धनपाल ने विक्रम संवत् १०२८ में 'पाइअलच्छीनाममाला' ( प्राकृत कोष' ) बनाया था । यह उस ग्रन्थ की प्रशस्ति से विदित होता है । यह कुटुम्ब चिर-काल से विद्या-प्रेमी तथा यशस्वी था । १. कातंत्रतन्त्रोदिततत्वदेवी यो बुद्धबौद्धाऽऽहं ततत्वतस्वः । साहित्य विद्यार्णवपारदर्शी निदर्शन काव्यकृतां बभूव ।।४।। २. अलब्ध देवर्षिरिति प्रसिद्धि यो दानवर्षित विभूषितोऽपि । (तिलक मंजरी) ३ आजतक मिले हुये प्राकृत कोषों में यह प्राचीन से प्राचीन कोष है। For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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