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हरीतक्यादिवर्गः। ग्राहि तिक्तं कषायं च वातकच्च कफास्त्रहत् । धातूनां शोषकं रूक्षं मदकद्वाग्विवर्धनम् ॥ २३७ ॥
मुहर्मोहकरं रुच्यं सेवनात्पुंस्त्वनाशनम् ।। टीका-तिलभेद १, खसतिल २, ये पोस्तके नाम हैं. ये कास और श्वासकों हरनेवाला है. पोस्तफलका जो वकल है वो शीतल और हलका है ॥२३६॥ ग्राही, तिक्त, कसेला, और वातकों पैदा करनेवाला, और कफरक्तका हरनेवाला, और धातुनका शोषक, तथा रूखा, और नशा लाता है, वा अवाजको बढानेवाला है ॥३२७॥ और ये वारंवार मोहकारक, रुचिदायक, और कामदेवकों हित करता है.
अथ आफूक(अफीम)नामगुणाः. उक्तं खसफलं क्षीरमाफूकमहिफेनकम् ॥ २३८ ॥ आफूकं शोषणं ग्राहि श्लेष्मघ्नं वातपित्तलम् ।
तथा खसफलोद्भुतवल्कलप्रायमित्यपि ॥ २३९ ॥ टीका-पोस्तके फलके दूधकों अफूक और अहिफेन कहते हैं ॥ २३८ ।। अफीम देहकों सुखानेवाली, ग्राही, कफकों हरनेवाली है, वातपित्तको बढानेवाली है. और ये गुणमें पोस्तके वकलसदृश गुणवाली होती है ॥ २३९॥
अथ खसबीज(खसखस)नामगुणाः. उच्यते खसबीजानि तेखा खसतिला अपि । खसबीजानि बल्यानि वृष्याणि सुगुरूणि च ॥ २४० ॥
जनयन्ति कर्फ तानि शमयन्ति समीरणम् । टीका-इस पोस्तके बीजोंकों खाखस तिलभी कहते हैं. ये खसखस बलकों बढानेवाली, और पुष्ट, भारी, है ॥ २४० ॥ तथा कफकों पैदा करती है और वातकों हरती है.
अथ सैन्धवनामगुणाः. सैन्धवोऽल्पो शीतशिवं माणिमन्थं च सिन्धुजम् ॥२४१॥ सैन्धवं लवणं स्वादु दीपनं पाचनं लघुः। स्निग्धं रुच्यं हिमं वृष्यं सूक्ष्म नेत्र्यं त्रिदोषहत् ॥ २४२ ।।
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