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हरीतक्यादिनिघंटे
॥ २२९ ॥ भिलावेका फल पक्का भया पाकमें मधुर है, रस हलका है, कसेला, पाचन, स्निग्ध, तीखा, गरम, छेदन करनेवाला, और भेदन करनेवालाभी कहा है, ॥ २३० ॥ कांतिकों बढानेवाला, अग्निकों प्रबल करता है, कफरोग, वातरोग, घाव, और उदररोग इनकों हरनेवाला है. तथा कुष्ठरोग, बवासीर, और संग्रहणी, वायगोला, शोथ, और अफरा, ज्वर, कृमी, इनकोभी हरनेवाला है। २.३१ ॥ तन्मज्जा मधुरो वृष्यो बृंहणो वातपित्तहा । वृत्तमारुष्करं स्वादु पित्तघ्नं केयमनित् ॥ २३२॥ भल्लातकः कषायोष्णः शुक्रलो मधुरो लघुः । वातश्लेष्मोदरानाहकुष्ठाशग्रहणीगदान् ॥ २३३ ॥ हन्ति गुल्मज्वरश्वित्रवह्निमान्द्यक्रिमिव्रणान् ।
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टीका -- इसकी गिरी मधुर होती हैं, पुरुषत्वको बढानेवाली, बलकों बढानेवाली, वातरोग तथा पित्तकों हरनेवाली है, और गोल भिलावा मधुर, पित्तकों हरनेवाला कहा है, अग्निकों प्रबल करनेवाला है || २३२ || और ये भिलावा कसेला होता, रम, वीर्यकों बढानेवाला, मधुर, तथा हलका है. वात, कफ, उदररोग, अफरा, कुष्ठ, ववासीर, संग्रहणी, इनकों जीतनेवाला है || २३३ ॥ और वायगोला, ज्वर, श्वेतकुष्ठ, मन्दाग्नि, तथा कृमि, और घावोंकों हरता है.
भङ्गा (भांग) नामगुणाः.
भङ्गा गंजा मातुलानी मादिनी विजया जया ॥ २३४ ॥ भंगा फहरी तिक्ता ग्राहिणी पाचनी लघुः । तीक्ष्णोष्णा पित्तलानाहमन्दवाग्वह्निवर्धिनी ॥ २३५॥
टीका -भंगा १, गंजा २, मातुलानी ३, मादिनी ४, विजया ५, जया ६, ये भांगके नाम हैं || २३४ ॥ ये कफकों पैदा करती हैं. तिक्त, ग्राहणी, पाचन, तथा हलकी, तीक्ष्ण और गरम है, और पित्तकों प्रबल करनेवाली, मोह, तथा मन्दवाणी, मंदानि, इनकोंभी प्रबल करनेवाली है ॥ २३५ ॥ अथ खसफल (पोस्त ) नामगुणाः.
तिलभेदः खसतिलः कासश्वासहरः स्मृतः । स्यात् वा खसफलोद्भूतं वल्कलं शीतलं लघु ॥ २३६ ॥
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